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एक गरीब परिवार की व्यथा देख आंसू भी निकल गए गरीब होना भी एक गुनाह है😭😭😭😭
#प्रयास करना हमारा काम है,,,,,,

जैसे ही ट्रेन रवाना होने को हुई, (समय निकाल कर पढ़े🙏)
एक औरत और उसका पति एक ट्रंक लिए डिब्बे में घुस पडे़।
दरवाजे के पास ही औरत तो बैठ गई पर आदमी चिंतातुर खड़ा था।
जानता था कि उसके पास जनरल टिकट है और ये रिज़र्वेशन डिब्बा है।
टीसी को टिकट दिखाते उसने हाथ जोड़ दिए।
" ये जनरल टिकट है। अगले स्टेशन पर जनरल डिब्बे में चले जाना। वरना आठ सौ की रसीद बनेगी।"
कह टीसी आगे चला गया।
पति-पत्नी दोनों बेटी को पहला बेटा होने पर उसे देखने जा रहे थे।
सेठ ने बड़ी मुश्किल से दो दिन की छुट्टी और सात सौ रुपये एडवांस दिए थे।
बीबी व लोहे की पेटी के साथ जनरल बोगी में बहुत कोशिश की पर घुस नहीं पाए थे।
लाचार हो स्लिपर क्लास में आ गए थे।
" साब, बीबी और सामान के साथ जनरल डिब्बे में चढ़ नहीं सकते। हम यहीं कोने में खड़े रहेंगे। बड़ी मेहरबानी होगी।"
टीसी की ओर सौ का नोट बढ़ाते हुए कहा।
" सौ में कुछ नहीं होता। आठ सौ निकालो वरना उतर जाओ।"
" आठ सौ तो गुड्डो की डिलिवरी में भी नहीं लगे साब। नाती को देखने जा रहे हैं। गरीब लोग हैं, जाने दो न साब।" अबकि बार पत्नी ने कहा।
" तो फिर ऐसा करो, चार सौ निकालो। एक की रसीद बना देता हूँ, दोनों बैठे रहो।"
" ये लो साब, रसीद रहने दो। दो सौ रुपये बढ़ाते हुए आदमी बोला।
" नहीं-नहीं रसीद दो बनानी ही पड़ेगी। ऊपर से आर्डर है।रसीद तो बनेगी ही।
चलो, जल्दी चार सौ निकालो। वरना स्टेशन आ रहा है, उतरकर जनरल बोगी में चले जाओ।"
इस बार कुछ डांटते हुए टीसी बोला।
आदमी ने चार सौ रुपए ऐसे दिए मानो अपना कलेजा निकालकर दे रहा हो।

दोनों पति-पत्नी उदास रुआंसे
ऐसे बैठे थे, मानो नाती के पैदा होने पर नहीं उसके शोक में जा रहे हो।
कैसे एडजस्ट करेंगे ये चार सौ रुपए?
क्या वापसी की टिकट के लिए समधी से पैसे मांगना होगा?
नहीं-नहीं।
आखिर में पति बोला- "सौ-डेढ़ सौ तो मैं ज्यादा लाया ही था। गुड्डो के घर पैदल ही चलेंगे। शाम को खाना नहीं खायेंगे। दो सौ तो एडजस्ट हो गए। और हाँ, आते वक्त पैसिंजर से आयेंगे। सौ रूपए बचेंगे। एक दिन जरूर ज्यादा लगेगा। सेठ भी चिल्लायेगा। मगर मुन्ने के लिए सब सह लूंगा।
मगर फिर भी ये तो तीन सौ ही हुए।"☺️
" ऐसा करते हैं, नाना-नानी की तरफ से जो हम सौ-सौ देनेवाले थे न, अब दोनों मिलकर सौ देंगे। हम अलग थोड़े ही हैं। हो गए न चार सौ एडजस्ट।"
पत्नी के कहा।
" मगर मुन्ने के कम करना....""
और पति की आँख छलक पड़ी।
" मन क्यूँ भारी करते हो जी। गुड्डो जब मुन्ना को लेकर घर आयेंगी; तब दो सौ ज्यादा दे देंगे। "
कहते हुए उसकी आँख भी छलक उठी।
फिर आँख पोंछते हुए बोली-
" अगर मुझे कहीं मोदीजी मिले तो कहूंगी-"
इतने पैसों की बुलेट ट्रेन चलाने के बजाय, इतने पैसों से हर ट्रेन में चार-चार जनरल बोगी लगा दो, जिससे न तो हम जैसों को टिकट होते हुए भी जलील होना पड़े और ना ही हमारे मुन्ने के सौ रुपये कम हो।"
उसकी आँख फिर छलक पड़ी।
" अरी पगली, हम गरीब आदमी हैं, हमें वोट देने का तो अधिकार है, पर सलाह देने का नहीं। रो मत।

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1857 की क्रांति को भारत के पहले स्वतंत्रता संग्राम के रूप में जाना जाता है. इतिहास में ये क्रांति इसी नाम से दर्ज है. भारतीय इतिहास में ऐसे कई राजा और सम्राट हुए हैं जिन्होंने स्वतंत्रता संग्राम के दौरान विदेशी ताकतों को यहां की मिट्टी पर आसानी से पांव नहीं जमाने दिए. भारतीय इतिहास में राजा-रजवाड़ों, सम्राटों पर कई कहानियां प्रचलित हैं. लेकिन रानियों पर कम ही बात होती है. अगर होती भी है तो नाम मात्र.
जबकि सच तो ये है कि भारत भूमि पर अनेक वीरांगनाओं ने जन्म लिया और इसकी रक्षा के लिए हसंते-हंसते अपने प्राणों की आहुति दे दी. रानी वेलू नचियार (Rani Velu Nachiyar) ऐसी ही एक वीर रानी थीं. जिनके बारे में कहा जाता है कि उन्होंने रानी लक्ष्मीबाई से बहुत पहले अंग्रेज़ों के छक्के छुड़ाए थे.
कौन थी रानी वेलू नचियार?
शिवगंगा पर अंग्रेज़ों का आक्रमण
मैसूर के हैदर अली से मुलाकात
नवाब के कहने पर शिवगंगा लौटीं
अंग्रेज़ों के खिलाफ छेड़ दिया युद्ध
अंग्रेज़ों को बहादुरी से मार भगाया
कौन थी रानी वेलू नचियार?
रानी वेलू नचियार तमिलनाडु के शिवगंगई क्षेत्र की धरती पर जन्मीं और अंग्रेज़ों से युद्ध में जीतने वाली पहली रानी थी. उन्होंने झांसी की रानी लक्ष्मीबाई से काफ़ी पहले अंग्रेज़ों से लोहा लिया और उनको नाको चने चबवा दिए. तमिल उन्हें वीरमंगाई (बहादुर महिला) कहकर बुलाते हैं. मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, 3 जनवरी, 1730 को उनका जन्म रामनाड साम्राज्य के राजा चेल्लमुत्थू विजयरागुनाथ सेथुपति (Chellamuthu Vijayaragunatha Sethupathy) और रानी स्कंधीमुत्थल (Sakandhimuthal) के घर उनका जन्म हुआ.
रानी वेलू को किसी राजकुमार की तरह ही युद्ध कलाओं, घुड़सवारी, तीरंदाज़ी और विभिन्न प्रकार के अस्त्र-शस्त्रों का प्रशिक्षण दिया गया. इसके अलावा उन्हें अंग्रेज़ी, फ़्रेंच और उर्दू जैसी कई भाषाएं भी सिखाई गईं. 1746 में, जब वेलू नचियार 16 साल की हुईं तब उनका विवाह शिवगंगा राजा Muthuvaduganathaperiya Udaiyathevar के साथ कर दिया गया. दोनों की एक पुत्री हुई, जिसका नाम वेल्लाची रखा गया. लगभग 2 दशकों तक शांति से राज करने के बाद अंग्रेज़ों की नज़र इस राज्य पर पड़ी.
शिवगंगा पर अंग्रेज़ों का आक्रमन
1772 में ईस्ट इंडिया कंपनी की अंग्रेज़ सेना और अरकोट के नवाब की सेनाओं ने मिलकर शिवगंगई पर आक्रमण किया. कलैयार कोली युद्ध नाम से इस युद्ध में वेलू नचियार के पति और कई अन्य सैनिक मारे गए. ये उस समय के सबसे विध्वंसक युद्धों में से एक थे. अंग्रेज़ी सेना ने किसी को नहीं बख़्शा, बच्चे, बूढ़े और महिलाएं सभी को मौत के घाट उतार दिया गया. वेलू नचियार और उनकी पुत्री सकुशल बच निकलने में क़ामयाब हुईं.

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पुरूष की सिर्फ़ पैदा होने की ख़ुशी मनाई जाती है, बाक़ी उसकी तमाम ज़िंदगी स्त्री की ख़िदमत में ही गुज़र जाती है।
फिर चाहे वो मां का ख़याल रखना हो, बहन का दहेज़ जुगाड़ करना हो, पत्नी के ख़र्चे या फ़िर बेटी की परवरिश।

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हल्दीघाटी का युद्ध मुगल बादशाह अकबर और महाराणा प्रताप के बीच 18 जून 1576 ई. को लड़ा गया था। अकबर और राणा के बीच यह युद्ध महाभारत युद्ध की तरह विनाशकारी सिद्ध हुआ था। ऐसा माना जाता है कि इस युद्ध में न तो अकबर जीत सका और न ही राणा हारे।
अकबर की विशाल सेना में मच गई थी भगदड़
हल्दीघाटी का युद्ध भारतीय इतिहास में प्रसिद्ध है। अकबर ने मेवाड़ को पूर्णरूप से जीतने के लिए 18 जून 1576 ई में आमेर के राजा मानसिंह एवं आसफ ख़ां के नेतृत्व में मुग़ल सेना को आक्रमण के लिए भेजा। दोनों सेनाओं के मध्य गोगुंदा के निकट अरावली पहाड़ी की हल्दीघाटी में युद्ध हुआ।
तब महाराणा प्रताप की सेना ने गुरिल्ला पद्धति से युद्ध करके अकबर की सेना में भगदड़ मचा दी। अकबर की विशाल सेना बौखलाकर लगभग पांच किलोमीटर पीछे हट गई। जहां खुले मैदान में महाराणा प्रताप और अकबर की सेना के बीच पांच घंटे तक जबरदस्त युद्ध हुआ।
इतना खून बहा कि तलाई का नाम पड़ा रक्ततलाई
इस युद्ध में लगभग 18 हज़ार सैनिक मारे गए। इतना रक्त बहा कि इस जगह का नाम ही रक्त तलाई पड़ गया। महाराणा प्रताप के खिलाफ इस युद्ध में अकबर की सेना का नेतृत्व सेनापति मानसिंह कर रहे थे। जो हाथी पर सवार थे। महाराणा अपने वीर घोड़े चेतक पर सवार होकर रणभूमि में आए थे जो बिजली की तरह दौड़ता था और पल भर में एक जगह से दूसरी जगह पहुंच जाता था। चेतक पर सवार महाराणा प्रताप एक के बाद एक दुश्मनों का सफाया करते हुए सेनापति मानसिंह के हाथी के सामने पहुंच गए थे। उस हाथी की सूंड़ में तलवार बंधी थी। महाराणा ने चेतक को एड़ लगाई और वो सीधा मानसिंह के हाथी के मस्तक पर चढ़ गया। लेकिन मानसिंह हौदे में छिप गया और राणा के वार से महावत मारा गया। हाथी से उतरते समय चेतक का एक पैर हाथी की सूंड़ में बंधी तलवार से कट गया। इधर राणा को दुश्मनों से घिरता देख सादड़ी सरदार झाला माना सिंह उन तक पहुंच गए और उन्होंने राणा की पगड़ी और छत्र जबरन धारण कर लिया।
हल्दीघाटी में नहीं हुई थी प्रताप की पराजय , अकबर ने खफा होकर लगाई थी मानसिंह पर पाबंदी
युद्धभूमि पर महाराणा प्रताप के घोड़े चेतक का बलिदान
अब स्वामभक्त चेतक की बारी थी जो अपना एक पैर कटा होने के बावजूद महाराणा को सुरक्षित स्थान पर लाने के लिए बिना रुके पांच किलोमीटर तक दौड़ा। यहां तक कि उसने रास्ते में पडऩे वाले 100 मीटर के बरसाती नाले को भी एक छलांग में पार कर लिया। राणा को सुरक्षित स्थान पर पहुंचाने के बाद ही चेतक ने अपने प्राण छोड़े। इतिहास में चेतक जैसी स्वामीभक्ति की मिसाल और कहीं देखने को नहीं मिलती। जहां चेतक ने प्राण छोड़े वहां राणा की बनवाई चेतक समाधि मौजूद है।

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आदिपुरुष फिल्म बनाने वालों के मुताबिक रावण लुहार था, जब इन्द्रजीत लिफ्ट से हनुमानजी को लेकर आता है, तब रावण अपनी वर्कशॉप में लोहा कूट रहा था। इस प्रकार इंजीनियर रावण लुहार लंका की अर्थव्यवस्था के लिए निरन्तर चिंतित था और इंफ्रास्ट्रक्चर पर ध्यान दे रहा था।
रावण ने अपने बेटे इन्द्रजीत को भी मैकेनिकल इंजीनियर बनाया, और उसने टार्जन द वंडर कार का आविष्कार किया।
क्या बवासीर बनाया है रामायण के नाम पर गटरवुड वालों ने

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पंचमुखी हनुमान की पूजा का महत्त्व..🔆

लंका युद्ध के दौरान अहिरावण अपनी मायावी शक्ति का प्रयोग करते हुए भगवान श्री राम और लक्ष्मण को मूर्छित कर पाताल लोक लेकर पहुंच गया था.

अहिरावण को देवी का वरदान था कि जब तक कोई पाँच दिशाओं में रखे पांचों दीपक को एक साथ नहीं बुझाएगा, तब तक उसका वध असंभव है.

तब हनुमान जी ने पांच दिशाओं में मुख किए पंचमुखी हनुमान का अवतार लिया और पांचों दीपकों को एक साथ बुझाकर अहिरावण का वध किया. तभी से पंचमुखी हनुमान जी के स्वरूप की पूजा होती है.

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