गुरुवाणी
आसक्ति स्वास में ज्वर और व्यग्रता लाती है, व्यग्रता मन की शांति को हर लेती है। और मन की शांति के बिना तुम बिखर जाते हो, टूट जाते हो और दु:खी होते हो। दुर्भाग्यवश, अधिकांश व्यक्ति इसे समझने में देर कर देते हैं। इससे पहले कि तुम पूरे बिखर जाओ, अपने आप को संभालो और अपनी सांस की व्यग्रता को समर्पण और साधना द्वारा दूर करो।
जब कोई आसक्ति के सागर में डूब रहा हो, शरणागति ही "लाइफ जैकेट" की तरह है। विश्राम करो। इस दिशा में तुम्हारा पहला कदम है अपनी आसक्ति को ज्ञान की और, ईश्वर की और मोड़ देना।
