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सेंगोल का अर्थ कर्तव्यपरायणता होता है। यह एक राजदंड है।
शिवभक्त महाशक्ति चोल राजा अपने 500 वर्ष के लंबे शासनकाल में सत्ता हस्तांतरित करते थे।
यह पवित्र राजदंड वैदिक पुजारियों द्वारा पहले गंगाजल से पवित्र किया जाता है। फिर क्रमशः शासक को सौंपते हैं।
उत्तरापथ में राजमुकुट से सत्ता हस्तांतरित होती है।
1947 में राजगोपालाचारी के अनुरोध पर कि भारतीय संस्कृति में सत्ता हस्तांतरण एक प्रक्रिया से होती है, नेहरू जी तैयार हो गये।
चेन्नई के सोनारों ने एक पवित्र सेंगोल बनाया। जिसे पहले लाकर माउंटबेटन को दिया गया। फिर पुजारियों ने मंत्रोच्चार से इसे गंगाजल से पवित्र किया और नेहरू को सौंप दिया।
यह कार्य तमिलनाडु के शैव मठ थिवरुदुथुराई के महायाजकों ने संपन्न कराया गया था।
तमिलनाडु की कलाकार पद्मा सुब्रमण्यम ने जब प्रधानमंत्री को यह अवगत कराया तो उस सेंगोल की बहुत खोज हुई।
प्रयागराज के संग्रहालय में यह सेंगोल मिला। जो लिखा गया था वह कहने योग्य नहीं है। इसे संग्रहालय में नेहरू की छड़ी कहके रखा गया था।
सेंगोल पर गोल पृथ्वी बनी है। उस पर भगवान शिव के वाहन नंदी हैं। यह सनातन धर्म के राज्यधर्म का एक प्रतीक अब नई संसद में लोकसभा अध्यक्ष की पीठ के पास होगा।
प्रधानमंत्री ने अपनी सांस्कृतिक परंपरा में यह अमूल्य योगदान किया है।

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यदि पृथ्वी पर कोई बड़ा परिवर्तन किसी कारण से आता है तो सबसे पहले आकर में जो जीव बड़े होते हैं। वह खत्म हो जाते है।
पिछले सौ वर्षों में मनुष्य द्वारा जंगल काट दिये गये। घास के मैदान पर शहर बस गये।
80 % जंगली जीव नष्ट हो गये। इस नष्ट होने में प्रमुख कारन बना कि उनके नवजात बच्चे नही बचे।
जो बचे है वह सरंक्षण के द्वारा ही बचे है। वह भी प्रदर्शन के लिये बचाये गये।
लेकिन एक जीव जो आकार में बहुत बड़ा था। वह अपना अस्तित्व बचा ले गया।
वह है हाथी।
इसका एक ही कारण है। हाथियों में पारिवारिक व्यवस्था बहुत प्रगाढ़ है। यहां तक कि हाथियों के बच्चों को उनकी मौसी, चाची पाल देती है।
किसी कारणवश माँ के न रहने पर भी हाथियों के बच्चे मरते नहीं है। हाथी सैदव समूह में रहते है। अमूनन उनका यह परिवार ही होता है। जिसमें माता पिता, चाची मौसी सभी होते है।
आज हमें लगता है कि एकांकी परिवार सुखमय होता है। लेकिन लोग यह समझते नही कि अकेलेपन से बड़ा कोई अभिशाप नहीं है।
आज्ञा देना और आज्ञा का पालन करना, बड़े सौभाग्य कि बात है। इसे बोझ भी समझा जा सकता है। लेकिन यह अस्तित्व के लिये खतरा है।
भगवान जब शांतिदूत बनकर हस्तिनापुर गये तो उन्होंने धृतराष्ट्र से कहा-
हे राजन, आप भरत के वंशज है। आप धर्म, न्याय को समझते है। जो कुटुंब आपका बिखर रहा है। उसको रोकिये, जब कुटुंब ही नहीं होगा तो सारा सुख, वैभव धूल के समान है।।

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अपनी प्राचीनता, सभ्यता, अतीत से जुड़े रहना गौरव से अधिक अस्तित्व के लिये आवश्यक है।
कोई शाखा कितनी भी हरी भरी क्यों न हो, वह अपनी जड़ों को काटकर जीवित नहीं रह सकती है।
आप जानते है संसार के हर कोने से पशु -पंछी माइग्रेशन करते है। वह हजारों किलोमीटर दूर साइबेरिया से भारत आ जाते हैं। सदियों से उनका यह माइग्रेन इसलिये संभव है कि पीढ़ी दर पीढ़ी उनको याद रहता है। उनको किन रास्तों से गुजरना है।
यक्ष ने युधिष्ठिर से पूछा , यदि यह संशय हो जाय कि कौन सा मार्ग चुनना चाहिये तो क्या करना उचित है ?
महाराज युधिष्ठिर ने कहा वही मार्ग उचित है। जिनसे हमारे महापुरुष गये होते हैं।
विषम से विषम परिस्थितियों से व्यक्ति, समाज , राष्ट्र निकल आता जब वह अपनी जड़ों से जुड़ा रहता है।
संस्कृति माला कि वह धागा है। जो सभी पुष्पों को जोड़कर रखती है। यह गौरव कि बात है हमारी एक ऐसी संस्कृति है जो समत्व में विश्वास करती है।
कथित पढ़े लिखे लोग अपनी छवियों में कैद रहते है। उन्हें अपनी संस्कृति का वर्णन करने में लज्जा आती है।
उपनिवेश बनाकर दुनिया पर अत्याचार करने वाले ब्रिटेन के राजा राज्याभिषेक करते है। दुनियाभर के देशों के प्रतिनिधि आते हैं। उन्हें लज्जा नहीं आती है।
हम उस संस्कृति से है।
जिसने कभी किसी पर युद्ध नहीं थोपा, किसी को उपनिवेश नहीं बनाया, किसी का बलात मत नहीं बदला, किसी के पूजाघर नहीं तोड़े तो हम क्यों लज्जित हो।
हमें तो गर्व होना चाहिये कि जब तक भारत है। तब तक मनुष्यता, सहअस्तित्व जीवित रहेगा।।

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रमई श्यामलाल हमारे यहां हरवाह थे। सुबह चार बजे दोनों लोग आ जाते। चार जोड़ी बैल थे। दो बीघा खेत जोतकर आ जाते।
फिर दोनों लोग पिताजी के साथ बैठकर दाना पानी करते। पिताजी के हम उम्र ही थे, उन्हें भईया कहते थे।
भईया सरसों बोना है, गेहूं बोना है। भराई करनी है।
ये कहिये कि रमई श्यामलाल ही देखते थे। उनको जो खेत मिला था, उसका आज वही वही नाम है। श्याम लाल वाला खेतवा।
समय बदला बैल कि जगह ट्रैक्टर हो गये। धीरे धीरे रमई, श्यामलाल भी बुढ़ा गये।
रमई के मेहरारू गदरा माई रहीं। हम उनको माई कहते थे। क्योंकि बचपन में वही हमको तेल मालिश करती थी।
श्यामलाल के लड़के ठीक ठाक कमा लेते थे। लेकिन रमई कि गरीबी वैसे ही थी। उनके दो तीन बच्चे हुये थे लेकिन जन्म के समय ही मर गये।
हरवाही खत्म हुये दशकों बीत गया था। लेकिन रमई के पूरे साल भर का अन्न उनके घर पिताजी भेज देते थे।
अब रमई चल फिर नहीं पाते थे। रीढ़ कि हड्डी में चोट लग गई थी। एक दिन गदरा माई घर आई।
पिताजी पूछे, का गदरी रमई ठीक है ?
बोली हां ठीक है। कह रहे थे अब पता नहीं कब तक जीवित रहे। एक बार भइया से मिल लेईत।
पिताजी कहे ठीक है। हम दो एक दिन में आई थ।
उस समय पिताजी स्वस्थ नहीं थे। फिर हमसे कहे कि चलो रमई को देख लेते हैं।
हम कहे, तबियत ठीक नहीं आपकी, हम रमई को गाड़ी में बिठाकर लेते आते हैं।
मेरी तरफ बड़े रुष्ट भाव से थोड़ी देर देखते रहे। फिर मुझसे कहे तुम्हारी भी गलती नहीं है।
शिष्टाचार में किसी के द्वार पर जाकर अथिति बनना और किसी को मिलने के लिये बुला लेने में अंतर होता है।
रमई, मुझसे मिलने से अधिक यह चाहते हैं कि मैं उसके द्वार पर जाऊं।
हम कहे तब ठीक है।
उनको लेकर रमई के यहां गये। रमई को पहले ही पता चल गया था।
वास्तव में जब मैं वहां पहुँचा तब समझे कि पहले के लोगों में कितना अपनत्व होता था।
पिताजी के लिये एक खटिया पर चद्दर डाली गई थी। राजाराम हलवाई के यहां से एक पाव मिठाई और पानी रखा था।
पिताजी बाहर से ही बुलाये रमई ?
रमई तो एकदम भाव विभोर हो गये। उनकी आँखें भर आईं थी।
रमई बोले भईया समझ ल मिलने के लिये प्राण ना निकलत रहा।
पिताजी फटकारते हुये बोले, चुप रहो। कौनो चीज के कमी है क्या। इस बार लग रहा दाल नहीं आई थी।
रमई बोले अरे भईया सब भरा है।
हम पहली बार देखे जब पिताजी किसी के द्वार पर बैठकर मीठा पानी पी रहे है। उनके ताम्र का लौटा गिलास हम सब नहीं छूते है। आज रमई के यहां बात चीत करते हुये पानी मीठा लिये।
आते समय रमई को कुछ पैसा दवाई के लिये दिये।
हमसे रास्ते में कहने लगे रमई बहुत मेहनती था। अकेले पूरी खेती कर लेता था। थोड़ा ध्यान रखना तुम लोग उसको खाने पीने कोई कमी ना हो।
हम उस समाज को सोचते हैं। कितना प्रेम भाव था। हम उनकी आलोचना करते हैं। ऐसे ऐसे लज्जाजनक आरोप लगाते हैं। जो थे ही नहीं।
आज ऑफिस में प्रतिदिन झाड़ू लगाने वाले को कोई पूछता नहीं, वह नमस्कार करे तो साहब लोग बोलते तक नहीं! इसे ही सम्भवतः आधुनिकता कहते हैं।

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मित्रों कल 30 मई को मोदी सरकार के वर्तमान कार्यकाल के 4 वर्ष पूरे हो गए और आज से पांचवां वर्ष शुरू हो गया। यानी मोदी सरकार के वर्तमान काल का अंतिम वर्ष। आपको याद होगा कि मोदी जी अपने कार्यकाल के पहले चार वर्षों में देश के विकास का करते हैं और पांचवे वर्ष में राजनीति करते हैं।
तो फिर मित्रो! पिछले कार्यकाल के अंतिम वर्ष में हमने जिस तरह मोदी जी के पक्ष में जोरदार विजय अभियान चलाया था उसी तरह अब फिर शुरू करना है। मैं तो बहुत पहले वादा कर चुका हूं कि अगर ऊपर वाले ने जिंदगी बख्शी तो 2024-29 के लिए मैं फिर मोदी समर्थन अभियान में जुट जाऊंगा। मुझे तो अपना वादा निभाना ही है।
हालांकि इस समय मोदी जी या बीजेपी के टक्कर में कोई है नहीं लेकिन अपनी सेना चाहे जितनी भी मजबूत हो कभी निश्चिंत नहीं रहना चाहिए। सावधानी हटी, दुर्घटना घटी। विपक्षीगण व मोदी विरोधी शक्तियां मोदी जी के लिए चुनौती खड़ा करने की कोशिश में जुट गई हैं। उनकी उठक बैठक जारी है।
तो फिर आज से शुरू हो जाइए -

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मित्रों कल 30 मई को मोदी सरकार के वर्तमान कार्यकाल के 4 वर्ष पूरे हो गए और आज से पांचवां वर्ष शुरू हो गया। यानी मोदी सरकार के वर्तमान काल का अंतिम वर्ष। आपको याद होगा कि मोदी जी अपने कार्यकाल के पहले चार वर्षों में देश के विकास का करते हैं और पांचवे वर्ष में राजनीति करते हैं।
तो फिर मित्रो! पिछले कार्यकाल के अंतिम वर्ष में हमने जिस तरह मोदी जी के पक्ष में जोरदार विजय अभियान चलाया था उसी तरह अब फिर शुरू करना है। मैं तो बहुत पहले वादा कर चुका हूं कि अगर ऊपर वाले ने जिंदगी बख्शी तो 2024-29 के लिए मैं फिर मोदी समर्थन अभियान में जुट जाऊंगा। मुझे तो अपना वादा निभाना ही है।
हालांकि इस समय मोदी जी या बीजेपी के टक्कर में कोई है नहीं लेकिन अपनी सेना चाहे जितनी भी मजबूत हो कभी निश्चिंत नहीं रहना चाहिए। सावधानी हटी, दुर्घटना घटी। विपक्षीगण व मोदी विरोधी शक्तियां मोदी जी के लिए चुनौती खड़ा करने की कोशिश में जुट गई हैं। उनकी उठक बैठक जारी है।
तो फिर आज से शुरू हो जाइए -

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मित्रों कल 30 मई को मोदी सरकार के वर्तमान कार्यकाल के 4 वर्ष पूरे हो गए और आज से पांचवां वर्ष शुरू हो गया। यानी मोदी सरकार के वर्तमान काल का अंतिम वर्ष। आपको याद होगा कि मोदी जी अपने कार्यकाल के पहले चार वर्षों में देश के विकास का करते हैं और पांचवे वर्ष में राजनीति करते हैं।
तो फिर मित्रो! पिछले कार्यकाल के अंतिम वर्ष में हमने जिस तरह मोदी जी के पक्ष में जोरदार विजय अभियान चलाया था उसी तरह अब फिर शुरू करना है। मैं तो बहुत पहले वादा कर चुका हूं कि अगर ऊपर वाले ने जिंदगी बख्शी तो 2024-29 के लिए मैं फिर मोदी समर्थन अभियान में जुट जाऊंगा। मुझे तो अपना वादा निभाना ही है।
हालांकि इस समय मोदी जी या बीजेपी के टक्कर में कोई है नहीं लेकिन अपनी सेना चाहे जितनी भी मजबूत हो कभी निश्चिंत नहीं रहना चाहिए। सावधानी हटी, दुर्घटना घटी। विपक्षीगण व मोदी विरोधी शक्तियां मोदी जी के लिए चुनौती खड़ा करने की कोशिश में जुट गई हैं। उनकी उठक बैठक जारी है।
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जालंधर उप चुनाव में आप पार्टी ने शानदार जीत का जश्न मनाया
सीएम केजरीवाल और सीएम भगवंत मान मौके पर मौजूद

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जालंधर उप चुनाव में आप पार्टी ने शानदार जीत का जश्न मनाया
सीएम केजरीवाल और सीएम भगवंत मान मौके पर मौजूद

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