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श्रीरामचरितमानस के रचयिता श्री तुलसीदास जी को श्री राम भक्ति की ओर उन्मुख करने का श्रेय उनकी विदुषी धर्म पत्नी श्री रत्नावली जी को दिया जाता है।
एक बार श्री तुलसीदास जी की पत्नी रत्नावली अपने मायके मे थी
तब श्री तुलसीदास जी को रत्नावली की बहुत याद आने लगी।
उस समय बाहर जोरो की बारिश हो रही थी ,और रत्नावली जी का मायका नदी के उस पार था ।
पर तुलसीदास जी उस बात की परवाह किए बिना रत्नावली को मिलने रात में निकल पड़े।
कहा जाता है की एक लाश के सहारे उन्होंने नदी पार की और एक रस्सी के सहारे दूसरी मंजिल पर सो रही उनकी पत्नी के कक्ष मे पहुंच गये। श्री रत्नावली यह देख बहुत ही हड़बड़ा गई की, जिसे श्री तुलसीदास जी रस्सी बता रहे थे वह एक लंबा सांप था। अपने
लिए तुलसीदास जी का इतना मोह
देखकर रत्नावली ने श्री तुलसीदास जी को कहा:-
" मेरे इस हाड मांस के देह से इतना प्रेम ? अगर इतना प्रेम श्रीराम से होता तो आपका जीवन संवर जाता। यह बात सुनकर तुलसीदास जी सन्न रह गए, तुलसीदास जी के ज्ञान चक्षु खुल गये , एक क्षण भी रूके बीना वह वहा से चल दिए।
इस घटना के बाद उन्होंने अपना जीवन श्रीराम की भक्ति और श्रीराम जी के बारे मे लिखे गये साहित्य संशोधन, एवं लेखन कार्य के लिए समर्पित कर दिया। जय श्रीराम।
पन्द्रह सौ चौउन विसे, कालिंदी के
तीर,
श्रावन शुक्ला सप्तमी,
तुलसी धरयो शरीर।
इस दोहे अनुसार महाकवि संतमुनिश्रेष्ठ तुलसीदास जी का जन्म उत्तर प्रदेश के चित्रकूट जिले के राजापुर नामक स्थान मे संवत 1554 में यमुना नदी के किनारे हुआ था ।
संवत सोलह सौ असी ,
असी गंग के तीर ।
श्रावण शुक्ला सप्तमी,
तुलसी तज्यो शरीर। ।
संवत 1680 मे काशी के असी घाट में तुलसीदास जी का देहांत हुआ था । श्रीरामचरितमानस के रचनाकार श्री तुलसीदास जी की आयु इस हिसाब से 126 साल है
राजापुर गांव मे तुलसीदास जी ने रामचरितमानस गंन्थ की रचना करी। वर्तमान में यहीं श्रीरामचरितमानस मंदिर है। श्री तुलसीदास जी ने 1631 में उनकी 76 वर्ष की आयु में श्रीरामचरितमानस की रचना शरू की इस ग्रंथ को पूरा होने में 2 साल 7 माह और 26 दिन का समय लगा । संवत 1633 मे पूर्ण हुआ। लगभग 449 साल पहले रामचरितमानस लिखा गया। कागज का आविष्कार हो चुका था
तुलसीदास जी ने लकड़ी की कलम से खुद स्याही बनाकार श्रीरामचरितमानस लिखा है ।अभी पुरातत्व विभाग द्वारा इस पांडुलिपियां की देखभाल की जा रही है। अपने अत:करण आत्म शांति के लिए लिखे गये इस गंन्थ में श्री तुलसीदास जी ने श्री राम जी के रूप में भारतीय संस्कृति एवं सभ्यता की ऐसी आदर्शमयी और जीवंत प्रतिभा प्रतिष्ठित की है, जो विश्व भर में असाधारण, अनुपम और अलौकिक है ।जो धर्म और नैतिकता के दृष्टिकोण से सर्वोपरि है जय श्रीराम