Découvrir des postesExplorez un contenu captivant et des perspectives diverses sur notre page Découvrir. Découvrez de nouvelles idées et engagez des conversations significatives
पिताजी एक माह से बीमार थे। उनके व माँ के कई बार फोन आ चुके थे , किन्तु मैं गाँव नहीं जा पाया। सच कहूँ तो मैं छुट्टियाँ बचने के मूड में था। उमा का सुझाव था - ''बुखार ही तो है, कोई गम्भीर बात तो है नहीं। दो माह बाद दीपावली है , तब जाना ही है। अब जाकर क्या करोगे। सब जानते हैं कि हम सौ किलोमीटर दूर रहते हैं। बार बार किराया खर्च करने में कौन सी समझदारी है। ''
एक दिन माँ का फिर फोन आया। माँ गुस्से में थी - '' तेरे पिताजी बीमार हैं और तुझे आने तक की फुर्सत नहीं। वह बहुत नाराज हैं तुझसे। कह रहे थे कि अब तुझसे कभी बात नहीं करेंगे। ''
उसी दिन ड्यूटी जाते समय मुझे ऑटो रिक्शा ने टक्कर मार दी। मेरे बायें पेअर पर प्लास्टर चढ़ाना पड़ा।
उमा ने माँ को फोन कर दिया था। दो घंटे में ही पिताजी हॉस्पीटल में आ पहुँचे। वह बीमारी की वजह से बहित कमजोर किन्तु दृढ थे। मुझे सांत्वना देते हुए बोले - '' किसी तरह की चिंता मत करना। थोड़े दिनों की परेशानी है। तू जल्दी ही ठीक हो जायेगा।
उन्होंने मुझे दस हजार रुपये थमाते हुए कहा - '' रख ले , काम आयेंगे। ''
मैं क्या बोलता। मुझे स्वयं के व्यवहार पर शर्म आ रही थी।
जीवन के झंझावात में पिताजी किसी विशाल चट्टान की तरह मेरे साथ खड़े थे।
लघुकथा : त्रिलोक सिंह ठकुरेला
#hindistory #hindipanktiyaan #hindiwriter #story #hindinama #hindisahitya #sahitya