Descubrir MensajesExplore contenido cautivador y diversas perspectivas en nuestra página Descubrir. Descubra nuevas ideas y participe en conversaciones significativas
ॐ नमो नमः।
श्रीराम!
आज के चौतरफा वैमनस्य व षड्यन्त्रजन्य विरोध से देश में हिन्दूधर्मावलम्बी त्रस्त हैं।विरोधियों के ऐसे भयानक जाल से बचने का एक मात्र उपाय सभी हिन्दुओंका आपस में समत्व भाव का गम्भीरता व विवेक पूर्व अवलम्बन मात्र है।कोई पार्टी या राजनैतिक नेता मात्र आंशिक रूपसे ही कुछ सहयोग भले करदें किन्तु निदान नहीं दे सकते। देखें इस विषय में हमारी वेदमाता क्या कहतीं हैं---
#सामानो_मन्त्रः_समितिः_समानं_मनः_सह_चित्तमेषाम्। #समानं_मन्त्रमभि_मन्त्रये_वः_समानेन_वो_हविषा_जुहोमि।।(ऋग्वेदः--१०--१९१--०३)।
अर्थ:-- सभी (राष्ट्र यज्ञ के सदस्यों) के --
#समानं_मन्त्र: स्तुति गुप्त भाषण, विचार समान (एक प्रकारके) हों।
#समितिःसमानी = प्राप्ति (फल) भी समान होना चाहिए।
#समानं_मनः अन्तःकरण भी समान ही होने चाहिए।।
#सहचित्तम् -सभी के विचार से उत्पन्न ज्ञान एकसमान (परस्पर मिलाकर एक प्रयोजन सिद्ध करने वाले) हों।
#अहं_वः_समानं_मन्त्रं_अभिमन्त्रये-हम आप सभी की एकता के लिए एक समान ही मन्त्रों का संस्कार करते है ।
#समानेन_हविषा_जुहोमि--एक जैसी स्वसमर्पण रूप हाविष के द्वारा होम करते हैं।
इस प्रकार सभी के साधनों विचारों उद्देश्यों में समानता होने का उपदेश हजारों माताओं से भी अधिक वात्सल्यमयी माताश्रुति कर रही हैं।।
अणु परमाणु से लेकर संसार के सभी पदार्थों में सभी जीव मात्र में भेद होते हैं। किन्तु इन भेदों में ही अभेद (समत्व) को खोजकर ही हम सभी लौकिकालौकिक उत्कर्ष प्राप्त कर सकते हैं।।
एक ही घर में अनेक सदस्य होते हैं। सभी की आकृति रूप रङ्ग स्वभाव विचार आदि सर्वथा भिन्न भिन्न ही होते हैं, फिर भी वे सभी एकसाथ मिल जुल कर सम्यक् जीवन जी लेते हैं। अलग अलग रहकर कुछ नहीं कर पाते।
वैसे ही देश भी एक विशाल घर ही होता है, जिसमें विभिन्न भाषाई जाति स्वभाव के जन निवास करते हैं। और ये भी तभी समुचित जीवन जी सकते हैं, जब विभिन्न भेदों में भी अभेद (समत्व) को समझ लेंगे।
एक ही गृह में विभिन्न छोटे बड़े उत्तम मध्यम कक्ष या अन्य साधन सामग्री होते हैं। और उनमें से कोई बड़े कोई छोटे, कोई उत्तम या कोई मध्यम सामग्री का यथावसर यथायोग्य, उपयोग करते हैं।फिर भी उनमें कोई ऊंच या हीन भावना नहीं होती। प्रशन्नता से निर्वाह हो जाता है। किन्तु --
यदि कोई बाहरी पड़ोसी उसी घर के सदस्यों में "तुम्हें छोटा कक्ष मिला है, तुम्हे छोटा या अधिक परिश्रम वाला काम मिल है, तुम्हारे साथ भेद व्यवहार किया जाता है, तुम्हें हल्के वस्त्रादि दिए जाते है", इत्यादि प्रकार से कुत्सित भाव भरदे, और वे सदस्य उसे ही स्वीकार करलें, तो एक ही घर में लड़ाई झगड़ा व अनेक प्रकार के उपद्रव होकर घरका सत्यानाश अवश्यम्भावी हो जाता है। वैसे ही एक देश का भी जाति दलित ऊंच नीच, और न जाने कितने अनर्थक शब्दों द्वारा आरोपित कुत्सित भावों से समस्त राष्ट्र का सर्वतोभावेन सत्यानाश होना निश्चित है।
अतः हिन्दुओं को चाहिए के कि विदेशियों व विदेशी मानसिकताओं वाले विघटक मिशनरियों, व ऐसे ही अन्य छुद्र अराजक सङ्गठनों, मीडिया के फोडू धुआँधार प्रदर्शन के षड्यन्त्र से बचें। आपस में सौहार्द लाकर सहयोग पूर्वक अपना समाजका देशका निर्माण करें।।
एक विशेष बात यह कि--कोई समानता का अर्थ यह न समझालें कि --एक घर के सभी सदस्यों को एक प्रकार की ही औषधि चाहिए। या भोजन परिमाप, या वस्त्रादि परिमाप एक बराबर ही चाहिए। समानता का अर्थ है-- सभी के लिए उनकी योग्यतानुरूप साधन सामग्री का विभाग् या भेद। ऐसा नहीं कि सभी को केवल पांच पांच रोटी ही मिलनी चाहिए। या सभी को गणित या विज्ञान ही पढ़नी चाहिए।। आज सबसे अधिक ऐसे विषय में हिन्दू जनता खास तौर पर दलित वर्ग को भ्रमित किया जा रहे हैं।।
जैश्री राम।
।सङ्गच्छध्वम्।
( साभार स्वामि राघवेंद्रदासजी )
पिछले 5 साल में 74 दिन ही चली दिल्ली विधानसभा।
सातवीं दिल्ली विधानसभा अपने 5 साल के कार्यकाल में सिर्फ 74 दिन ही चली जो पिछले सभी विधानसभा कार्यकालों की तुलना में सबसे कम है।
5 वर्षों में 14 विधेयक पारित किए गए जो इसके पिछले सभी कार्यकालों से सबसे कम है।
कुल 74 दिनों के सत्र के दौरान प्रश्नकाल 9 दिन ही हुए।