छत्तीसगढ़ के कोंडागांव के रहने वाले 62 वर्षीय कुम्हार अशोक चक्रधारी की अपनी कोई दुकान नहीं है, इसलिए आस-पास के गांवों में रहने वाले लोग उनके घर आकर उनकी बनाई कलाकृतियां खरीदते हैं। दये बिना आगे मत बढ़ना मित्रों
▲ अशोक कहते हैं, "हम पीढ़ियों से मिट्टी शिल्पकला आ रहे हैं, यह मेरा पुश्तैनी काम है, जो मैंने अपने पिता से सीखा था। बचपनअशोक कहते हैं, "हम पीढ़ियों से मिट्टी शिल्पकला आ रहे हैं, यह मेरा पुश्तैनी काम है, जो मैंने अपने पिता से सीखा था। बचपन से यही मेरी कला है, और यही हमारा रोज़गार भी है। मेरी तीन बच्चियां हैं, वे पढ़ने जाती हैं और मेरा हाथ भी बंटाती हैं। उनमें भी कहीं न कहीं यह कला है।मैं अपनी कला को और निखारते रहने के लिए नए-नए आईडिया सोचता रहता हूँ और कुछ ऐसा बनाता रहता हूँ जो मेरे आस-पास लोगों के काम आ सके। ये बिना आगे मत बढ़ना मित्रों