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अंग्रेज़ी पढ़ना और जानना अच्छा है, लेकिन हिंदी फ़िल्में बनाने वाले जिस दिन रोज़मर्रा की ज़िंदगी में हिंदी बोलना शुरू कर देंगे, हमारी फ़िल्मों में आत्मा अपने आप उतर आएगी. हिंदी फ़िल्म उद्योग न समाप्त हुआ है न कभी होगा. बस थोड़े से आत्म-मंथन की ज़रूरत है, हम नगाड़ा बजा के वापस लौटेंगे.
गई ना जान से देख ले अब्दुल ने काट दिया ,तनिक भी दया नहीं होती उनमें,तुरंत काट देंगे,बचपन से ही इन्हें सिखाया जाता है मजहबी कट्टरता केवल सज्जनता का ढोंग,
#ट्यूशन के बहाने अब्दुल दोस्त के घर गई थी वही काट काट कर टुकड़े में शूटकेश में भर दिया ,बहुत सही किया मैं खुस हूँ, अब्दुल के दीवानियो, मत सुधरों, ऐसे ही कटोगी,
देख लो मेरा अब्दुल ऐसा नही है जब तक मर कर शूटकेश में ना आ जाओ,पढ़ने के नाम पर इश्क़ लड़ा रही हो अब्दुल के साथ,
ये साली लव जिहाद करने वाले हमशा ऐसा करते हैं,