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जब परतंत्रता की बेड़ियाँ भारत माता को जकड़े हुए थीं, तब पंडित राम प्रसाद बिस्मिल, अशफाक उल्ला खां और ठाकुर रोशन सिंह जैसे क्रांतिदूतों ने काकोरी की धरती पर अंग्रेजी साम्राज्य की चूलें हिला दी थीं। इन हुतात्माओं के साहस ने सोए हुए राष्ट्र को जगाकर स्वतंत्रता संग्राम की दिशा बदल दी।
मातृभूमि की वेदी पर अपना सर्वस्व अर्पण करने वाले 'काकोरी ट्रेन एक्शन' के इन अमर नायकों को उनके बलिदान दिवस पर कोटि-कोटि नमन। आपकी अडिग देशभक्ति और सर्वोच्च बलिदान युगों-युगों तक देशवासियों के लिए प्रेरणापुंज बना रहेगा।
72 घंटे, एक जवान… और सामने 300 दुश्मन!
1962 की जंग का वो अध्याय जिसे भारत कभी नहीं भूल सकता
1962 के भारत–चीन युद्ध में कुछ कहानियाँ इतिहास नहीं, हौसले की मिसाल बन जाती हैं।
ऐसी ही एक कहानी है गढ़वाल राइफल्स के वीर जवान जसवंत सिंह रावत की—एक ऐसा नाम, जिसे सुनते ही रोंगटे खड़े हो जाते हैं।
उत्तराखंड के पौड़ी गढ़वाल के इस सपूत ने पूरे 72 घंटे तक अकेले मोर्चा संभाले रखा।
सामने थे 300 से अधिक चीनी सैनिक, लेकिन न डर था, न पीछे हटने का सवाल।
बर्फीली चोटियाँ, सीमित हथियार और असंभव हालात—फिर भी जसवंत सिंह रावत डटे रहे।
उनकी रणनीति और साहस ने दुश्मन को यह यकीन दिला दिया कि भारतीय सेना की एक बड़ी टुकड़ी वहां मौजूद है।
आखिरकार, देश की रक्षा करते हुए वह अमर हो गए।
कहते हैं आज भी उन पहाड़ों में उनके बलिदान की गूंज महसूस की जाती है।
भारतीय सेना आज भी उस पोस्ट पर जसवंत सिंह रावत को सम्मानपूर्वक “ड्यूटी पर तैनात” मानती है।
वह सिर्फ एक सैनिक नहीं थे—वह साहस की परिभाषा, हिम्मत का प्रतीक और भारत की शान थे।
भारत ऐसे वीर सपूतों पर सिर्फ गर्व नहीं करता, उनसे प्रेरणा लेता है।
🇮🇳
सलाम उस जांबाज़ को, जिसने अकेले इतिहास रच दिया।
#jaswantsinghrawat #indianarmy #1962war #bharatkeveer
72 घंटे, एक जवान… और सामने 300 दुश्मन!
1962 की जंग का वो अध्याय जिसे भारत कभी नहीं भूल सकता
1962 के भारत–चीन युद्ध में कुछ कहानियाँ इतिहास नहीं, हौसले की मिसाल बन जाती हैं।
ऐसी ही एक कहानी है गढ़वाल राइफल्स के वीर जवान जसवंत सिंह रावत की—एक ऐसा नाम, जिसे सुनते ही रोंगटे खड़े हो जाते हैं।
उत्तराखंड के पौड़ी गढ़वाल के इस सपूत ने पूरे 72 घंटे तक अकेले मोर्चा संभाले रखा।
सामने थे 300 से अधिक चीनी सैनिक, लेकिन न डर था, न पीछे हटने का सवाल।
बर्फीली चोटियाँ, सीमित हथियार और असंभव हालात—फिर भी जसवंत सिंह रावत डटे रहे।
उनकी रणनीति और साहस ने दुश्मन को यह यकीन दिला दिया कि भारतीय सेना की एक बड़ी टुकड़ी वहां मौजूद है।
आखिरकार, देश की रक्षा करते हुए वह अमर हो गए।
कहते हैं आज भी उन पहाड़ों में उनके बलिदान की गूंज महसूस की जाती है।
भारतीय सेना आज भी उस पोस्ट पर जसवंत सिंह रावत को सम्मानपूर्वक “ड्यूटी पर तैनात” मानती है।
वह सिर्फ एक सैनिक नहीं थे—वह साहस की परिभाषा, हिम्मत का प्रतीक और भारत की शान थे।
भारत ऐसे वीर सपूतों पर सिर्फ गर्व नहीं करता, उनसे प्रेरणा लेता है।
सलाम उस जांबाज़ को, जिसने अकेले इतिहास रच दिया।
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श्री बाँके बिहारी लाल की जय....राधे राधे🙏🌹🙏🌹
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राष्ट्रपति भवन में अब इतिहास का नया अध्याय लिखा गया है।
ब्रिटिश अधिकारियों की तस्वीरें हटाकर वहाँ देश के 21 परमवीर चक्र विजेताओं के चित्र लगाए गए हैं। यह कदम औपनिवेशिक दौर के प्रतीकों को हटाकर भारत के सच्चे वीरों को सम्मान देने की दिशा में एक मजबूत पहल है।
कभी जिन गलियारों में ब्रिटिश सहायक अधिकारियों के चित्र लगे होते थे, आज वही स्थान ‘परम वीर दीर्घा’ के रूप में जाना जाता है। यह दीर्घा भारत के सर्वोच्च सैन्य सम्मान परमवीर चक्र से सम्मानित सभी 21 जांबाज़ों को समर्पित है।
अब राष्ट्रपति भवन की दीवारों पर हमारे उन वीर सपूतों की तस्वीरें हैं, जिनकी बहादुरी और बलिदान पर पूरा देश गर्व करता है
#right4paws ने सीरीज़ A राउंड में ₹14 करोड़ की फंडिंग जुटाई है। यह निवेश HNIs (हाई नेटवर्थ इंडिविजुअल्स) के एक समूह से मिला है।
इस फंडिंग से कंपनी अपने मैन्युफैक्चरिंग इंफ्रास्ट्रक्चर, प्रोडक्शन कैपेसिटी, नई प्रोडक्ट कैटेगरी, टैलेंट हायरिंग और पैन-इंडिया विस्तार पर फोकस करेगी।
📢 डिजिटल संप्रभुता: अब सिर्फ चर्चा का विषय नहीं, हमारी डिजिटल ज़िंदगी की ज़रूरत!
जैसे-जैसे डिजिटल टेक्नोलॉजी का विस्तार हो रहा है, डेटा सुरक्षा, लोकलाइजेशन और कंट्रोल अब सबसे बड़ी प्राथमिकता बन चुके हैं।
विदेशी क्लाउड पर निर्भरता से उठते जोखिमों को समझें और जानें कैसे स्वदेशी क्लाउड प्लेटफॉर्म हमारे डेटा को सुरक्षित, सस्ता और भारत के कानूनों के अनुरूप रख सकते हैं।
Thand ka Kahar 😜🤪 Comedy reels 😂
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“साहब, मेरे पास दिल्ली आने के पैसे नहीं हैं, कृपया पद्मश्री डाक से भेज दीजिए” - यह बात कहने वाले कोई आम व्यक्ति नहीं, बल्कि ओडिशा के मशहूर लोक कवि हलधर नाग थे। 2016 में साहित्य के क्षेत्र में योगदान के लिए पद्मश्री पाने वाले हलधर नाग की सादगी ने पूरे देश को सोचने पर मजबूर कर दिया।
सफेद धोती, गमछा, बनियान और नंगे पांव जब वह राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी से सम्मान लेने पहुंचे, तो हर आंख ठहर गई। गरीबी, संघर्ष और साधना की यह मिसाल ओडिशा के बरगढ़ जिले से निकली थी। 10 साल की उम्र में माता पिता को खोने के बाद पढ़ाई छूटी, ढाबे में जूठे बर्तन धोए, स्कूल में बावर्ची बने और छोटी सी स्टेशनरी दुकान चलाई।
लेकिन लिखना नहीं छोड़ा। 1990 में पहली कविता छपी और फिर कोसली भाषा में 20 महाकाव्य रचे, जो आज भी उन्हें शब्दशः याद हैं।
यह कहानी बताती है कि सच्ची दौलत शब्दों की शक्ति, स्मृति की साधना और जमीन से जुड़ी रचनात्मकता होती है। हलधर नाग ने साबित किया है कि गरीबी कभी प्रतिभा की सीमा नहीं बनती।
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