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जब भी साइंस का सामना हुआ है वेद और उससे जुड़ी विद्याओ से हुआ है कल प्रकृति ने बता दिया की ज्योतिष पूर्ण रूप से प्रमाणित है
कल रात से पूरा फेसबुक चन्द्र और शुक्र की फ़ोटो से भरा पड़ा है...ये दृश्य बहुत ही सुंदर था...लेकिन उसके पीछे के सनातन विज्ञान के पहलू को भी जानना आवश्यक है...
हमारा सनातन कितना समृद्ध है वो कल रात 8:40 पर बनी इस कुंडली में आप स्पष्ट देख सकते हैं...7वें भाव में चन्द्र और शुक्र दोनो साथ में है...और आसमान में भी यही दृश्य हम सबने देखा..इसके अलावा लखनऊ जयपुर कोलकाता कोची किसी भी स्थान को रखकर आप कुंडली के किसी एप्प से देखिए कल की तिथि में चंद्र और शुक्र साथ ही मिलेंगे
जब दूरबीन का आविष्कार भी नहीं हुआ था उससे हजारों साल पहले हमारे पूर्वज ये गणनाएँ करते आ रहे हैं जो एकदम सटीक है और वैज्ञानिक भी...लेकिन अफ़सोस कि हज़ारों वर्षों पुराना हमारा ज्योतिष विज्ञान उपेक्षित है...
जब भी साइंस का सामना हुआ है वेद और उससे जुड़ी विद्याओ से हुआ है कल प्रकृति ने बता दिया की ज्योतिष पूर्ण रूप से प्रमाणित है
कल रात से पूरा फेसबुक चन्द्र और शुक्र की फ़ोटो से भरा पड़ा है...ये दृश्य बहुत ही सुंदर था...लेकिन उसके पीछे के सनातन विज्ञान के पहलू को भी जानना आवश्यक है...
हमारा सनातन कितना समृद्ध है वो कल रात 8:40 पर बनी इस कुंडली में आप स्पष्ट देख सकते हैं...7वें भाव में चन्द्र और शुक्र दोनो साथ में है...और आसमान में भी यही दृश्य हम सबने देखा..इसके अलावा लखनऊ जयपुर कोलकाता कोची किसी भी स्थान को रखकर आप कुंडली के किसी एप्प से देखिए कल की तिथि में चंद्र और शुक्र साथ ही मिलेंगे
जब दूरबीन का आविष्कार भी नहीं हुआ था उससे हजारों साल पहले हमारे पूर्वज ये गणनाएँ करते आ रहे हैं जो एकदम सटीक है और वैज्ञानिक भी...लेकिन अफ़सोस कि हज़ारों वर्षों पुराना हमारा ज्योतिष विज्ञान उपेक्षित है...
जब भी साइंस का सामना हुआ है वेद और उससे जुड़ी विद्याओ से हुआ है कल प्रकृति ने बता दिया की ज्योतिष पूर्ण रूप से प्रमाणित है
कल रात से पूरा फेसबुक चन्द्र और शुक्र की फ़ोटो से भरा पड़ा है...ये दृश्य बहुत ही सुंदर था...लेकिन उसके पीछे के सनातन विज्ञान के पहलू को भी जानना आवश्यक है...
हमारा सनातन कितना समृद्ध है वो कल रात 8:40 पर बनी इस कुंडली में आप स्पष्ट देख सकते हैं...7वें भाव में चन्द्र और शुक्र दोनो साथ में है...और आसमान में भी यही दृश्य हम सबने देखा..इसके अलावा लखनऊ जयपुर कोलकाता कोची किसी भी स्थान को रखकर आप कुंडली के किसी एप्प से देखिए कल की तिथि में चंद्र और शुक्र साथ ही मिलेंगे
जब दूरबीन का आविष्कार भी नहीं हुआ था उससे हजारों साल पहले हमारे पूर्वज ये गणनाएँ करते आ रहे हैं जो एकदम सटीक है और वैज्ञानिक भी...लेकिन अफ़सोस कि हज़ारों वर्षों पुराना हमारा ज्योतिष विज्ञान उपेक्षित है...

क्या कभी आप #हरिद्वार गए हैं ???
यहाँ के पण्डे आपके आते ही आपके पास पहुँच कर आपसे सवाल करेंगे.....
आप किस जगह से आये है??
मूल निवास, जाति गौत्र आदि पूछेंगे और धीरे धीरे पूछते पूछते आपके दादा, परदादा ही नहीं बल्कि परदादा के परदादा से भी आगे की पीढ़ियों के नाम बता देंगे जिन्हें आपने कभी सुना भी नही होगा.....
और ये सब उनकी सैंकड़ो सालों से चली आ रही किताबो में सुरक्षित है...
विश्वास कीजिये ये अदभुत विज्ञान और कला का संगम है...
आप रोमांचित हो जाते है जब वो आपके पूर्वजों तक का बहीखाता सामने रख देते हैं...
आपके पूर्वज कभी वहाँ आए थे और उन्होंने क्या क्या दान आदि किया...
लेकिन आजकल के बच्चे इन सब बातों को फ़िज़ूल समझते हैं उन्हें लगता है कि ये पण्डे सिर्फ लूटने बैठे हैं जबकि ऐसा नही है...
ये तीर्थो के पण्डे हमारी सभ्यता,संस्कृति के अटूट अंग है इनका अस्तित्व हमारे पर ही है...
अपनी संस्कृति बचाइए और इन्हें सम्मान दीजिये...
वैसे हिन्दुओ के नागरिकता रजिस्टर हैं ये लोग...
पीढ़ियों के डेटा इन्होंने मेहनत से बनाया और संजोया है...
इन्हें सम्मान दीजिये... 🙏🚩 जय श्री राम 🙏🚩
जब कभी आपको लगे कि आप एक विकसित युग में रहते हैं तो आप अजंता और एलोरा की गुफाओं में चले जाना वहाँ हमारे पूर्वजों की तकनीकें आपके भ्रम को चकनाचूर कर देंगी।
अजंता और एलोरा की गुफाएं! जिनके आश्चर्यों को मिटाने के लिए दुनियाँ के सात झूठे आश्चर्यों की लिस्ट तैयार की गई।
जब यह भूखी नंगी दुनियाँ आदमखोरों और लुटेरों की जिंदगी जी रही थी तब हमारे पूर्वजों ने एक पहाड़ को काटकर इस मंदिर का निर्माण कर पूरी दुनियाँ को हैरान कर दिया था।
एलोरा के कैलाश मंदिर का निर्माण राष्ट्रकूट वंश के नरेश कृष्ण (प्रथम) ने करावाया था।
अकेले कैलाश मंदिर के निर्माण के लिए पहाड़ से लगभग 40000 हजार टन पत्थर काट कर निकाले गए एक अनुमान के मुताबिक अगर 7000 कारीगर प्रतिदिन मेहनत करें तो लगभग 150 वर्षों में इस मंदिर का निर्माण कर सकेंगे लेकिन इस मंदिर का निर्माण केवल 18 वर्षों में ही कर लिया गया। जरा सोचिए आधुनिक क्रेन और पत्थरों को काटने वाली बड़ी-बड़ी मशीनों की गैर मौजूदगी में ऐसे कौन से उपकरणों का इस्तेमाल किया गया जिनकी वजह से मंदिर निर्माण में इतना कम समय लगा।
जहाँ दुनियाँ के सारे निर्माण नीचे से ऊपर की ओर पत्थरों को जोड़कर किये गए हैं वहीं इस मंदिर को बनाने के लिए एक विशाल पर्वत को ऊपर से नीचे की ओर काटा गया है।
आधुनिक समय में एक बिल्डिंग के निर्माण में भी 3D डिजाइन साफ्टवेयर, CAD साफ्टवेयर, और सैकड़ो ड्राइंग्स की मदद से उसके छोटे मॉडल्स बनाकर रिसर्च की जरूरत होती है फिर उस समय हमारे पूर्वजों ने इस मंदिर का निर्माण कैसे सुनिश्चित किया होगा?
हैरान करने वाली बात है कि पर्वत को काटकर निकाले गए लगभग 40000 टन पत्थर पत्थर आसपास के 50KM के इलाके में भी कहीं नहीं मिलते, आखिर इतनी भारी मात्रा में निकाले गए पत्थरों को किसकी सहायता से और कितनी दूर हटाया गया होगा।
जरूरी स्थानों पर खंभे, दो निर्माणों के बीच में पुल, मंदिर टावर, महीन डिजाइन वाली खूबसूरत छज्जे, गुप्त अंडरग्राउंड रास्ते, मंदिरों में जाने के लिए सीढ़ियाँ और पानी को स्टोर करने के लिए नालियाँ, इन सभी का ध्यान पर्वत को ऊपर से नीचे की ओर काटते हुए कैसे रखा गया होगा?
इस निर्माण को आप कुछ इस तरह से समझ सकते हैं कि जैसे एक मूर्तिकार एक पत्थर को तराशकर मूर्ति का निर्माण करता है वैसे ही हमारे पूर्वजों ने एक पर्वत को तराशकर ही इस मंदिर का निर्माण कर दिया गया ! महादेव 🙏