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फीस के पैसे नहीं थे तो स्कूल जाना कर दिया बंद, घर ढूंढकर खुद आए प्रिंसिपल और कही ऐसी बात फफक पड़ी छात्रा, दिल छू रहा Viral Video
सोशल मीडिया पर इन दिनों एक दिल छू लेने वाला वीडियो वायरल हो रहा है, जिसने लाखों लोगों की आंखें नम कर दी हैं। वीडियो एक ऐसी किशोरी की कहानी बताता है जो सिर्फ 500 रुपये फीस न भर पाने की वजह से 15 दिन से स्कूल नहीं जा रही थी।
परिवार की आर्थिक स्थिति कमजोर थी और बच्ची को डर था कि स्कूल जा पाना शायद अब संभव नहीं होगा। लेकिन आगे जो हुआ, उसने इंसानियत और शिक्षा के असली अर्थ को सामने ला दिया।
खेत में काम कर रही थी बच्ची
वीडियो में देखा जा सकता है कि स्कूल के प्रिंसिपल बच्ची की गैरहाजिरी से चिंतित हो जाते हैं। वे पहले उसके घर जाते हैं, लेकिन पता चलता है कि वह खेत में परिवार की मदद कर रही है, क्योंकि घर में और कोई विकल्प नहीं था। प्रिंसिपल बिना झिझक खेत की ओर बढ़ जाते हैं। वहां मिट्टी से सनी छात्रा को देखकर वे उसे बुलाते हैं और पूछते हैं कि वह स्कूल क्यों नहीं आ रही।
बच्ची हिचकिचाते हुए बताती है कि घर में पैसे नहीं थे, इसलिए स्कूल की फीस जमा नहीं कर पाई, और इसी शर्म में वह स्कूल नहीं जा रही थी। यह सुनते ही प्रिंसिपल उसे तुरंत आश्वासन देते हैं कि फीस न होने पर भी उसकी पढ़ाई नहीं रुकेगी। वे कहते हैं - फीस की ही बात है न फीस नहीं लेंगे।
यह सुनते ही बच्ची भावुक होकर रोने लगती है। प्रिंसिपल उसे दिलासा देते हैं और कहते हैं कि वह अगले दिन से स्कूल जरूर आए। इस पूरे दृश्य ने न केवल बच्ची का दिल जीत लिया बल्कि इंटरनेट पर भी लोगों के मन को गहराई से छू लिया।
वीडियो वायरल होने के बाद लोगों ने प्रिंसिपल की जमकर सराहना की। एक यूजर ने लिखा, “शिक्षक वही जो अपने छात्र को सिर्फ पाठ्यक्रम ही नहीं, बल्कि जीवन भी पढ़ाए।” दूसरे ने कहा, “यदि हर स्कूल में ऐसे प्रिंसिपल हों, तो कोई बच्चा गरीबी के कारण पढ़ाई से वंचित न रहे।”
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दीपावली यूनेस्को की इस सूची में शामिल, भारतीय त्योहार को मिला खास दर्जादिल्लीः भारत का रोशनी का पर्व दीपावली अब आधिकारिक रूप से यूनेस्को की अमूर्त सांस्कृतिक धरोहर की प्रतिनिधि सूची में शामिल हो गया है। यह घोषणा 2025 की सूची के साथ की गई, जिसमें दुनिया भर की 20 सांस्कृतिक धरोहरों को स्थान मिला है।यूनेस्को यह सूची दुनिया की उन जीवित परंपराओं, सामाजिक प्रथाओं, त्योहारों, लोककला और पारंपरिक ज्ञान प्रणालियों को सुरक्षित रखने के लिए तैयार करता है, जो पीढ़ियों से समाजों की सांस्कृतिक पहचान का हिस्सा रही हैं। दीपावली के अलावा, बांग्लादेश की तांगाइल साड़ी बुनाई कला को भी इस वर्ष की सूची में जगह मिली है।
🔥 इतिहास रचने की तैयारी: मोदी की गारंटी, विकसित भारत की सवारी! 🚀
यह तस्वीर सिर्फ एक नेता की नहीं, बल्कि 140 करोड़ भारतीयों के उस अटूट विश्वास की कहानी है जो पिछले एक दशक से प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी के नेतृत्व में नए आयाम छू रहा है। जब दुनिया चुनौतियों से जूझ रही थी, तब भारत ने 'आपदा को अवसर' में बदला और आत्मनिर्भरता (Self-Reliance) की ओर मजबूत कदम बढ़ाए।
विगत 10 वर्षों में, देश ने जो गति पकड़ी है, वह अभूतपूर्व है। चाहे वह धारा 370 को समाप्त करना हो, अयोध्या में राम मंदिर का भव्य निर्माण हो, या फिर गरीब कल्याण (Welfare of the Poor) की योजनाओं जैसे जन धन, उज्ज्वला, और हर घर जल से करोड़ों लोगों का जीवन बदलना हो—हर संकल्प को सिद्ध किया गया है। आज भारत की अर्थव्यवस्था दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था (Fifth Largest Economy) बन चुकी है और हमारा लक्ष्य तीसरी सबसे बड़ी शक्ति बनना है। यह सब केवल एक निर्णायक नेतृत्व (Decisive Leadership) और मजबूत इरादों (Strong Will) वाली सरकार के कारण ही संभव हो पाया है।
विपक्षी दलों के पास न कोई विज़न है और न ही देश के लिए कोई रोडमैप। वे केवल अस्थिरता और भ्रम पैदा करने की कोशिश कर रहे हैं। ऐसे में, हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि विकास की यह रफ्तार थमने न पाए। देश की सुरक्षा, सम्मान और प्रगति के लिए स्थिरता (Stability) सबसे महत्वपूर्ण है।
इस चुनाव में आपका एक वोट भारत के अगले 25 वर्षों की दिशा तय करेगा। यह 'परिवारवाद' बनाम 'राष्ट्रवाद' की लड़ाई है। आइए, कमल के निशान को दबाकर, मोदी जी के हाथ मजबूत करें और विकसित भारत 2047 (Viksit Bharat 2047) के सपने को साकार करने की नींव डालें। हाँ या नहीं?
ये पाकिस्तान के मशहूर प्रवक्ता तारीक मसूद हैँ। ये मुस्लिम धर्म गुरु भी हैँ, और काफी लोकप्रिये भी हैँ।
हाल ही में अपने एक इंटरव्यू में इनसे किसी ने पूछा कि आपके कितने बच्चे हैँ। तो इन्होने कहा “सिर्फ 19"
और उसी बयान को थोड़ा और प्रसिद्ध करने के लिए अपने एक तक़रीर के दौरान इन्होने कहा कि मै इस बात से शर्मिंदा हूँ कि मैने सिर्फ 19 बच्चे ही पैदा किये। बल्कि कम से कम मुझे 39 करना चाहिए था।
कम से कम 39 की सोच है तो इस हिसाब से 50 होते तब जाके ये पूरी तरह संतुष्ट होते।
जहाँ तक मुझे पता है, जानवरों में ही कुछ ऐसी प्रजातियाँ पाई जाती हैँ जिनके दर्जन से ज्यादा बच्चे होते हैँ।
इनके लिए दो शब्द कहना चाहोगे भाइयों?