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राज्यपाल लेफ्टिनेंट जनरल गुरमीत सिंह (से नि) ने रविवार को देहरादून में टाइम्स ऑफ इंडिया समूह द्वारा आयोजित “ET Leadership Excellence Awards” समारोह में विभिन्न क्षेत्रों में उत्कृष्ट योगदान देने वाले विशिष्ट व्यक्तियों को सम्मानित किया।
समारोह को संबोधित करते हुए राज्यपाल ने कहा कि यह आयोजन केवल पुरस्कार वितरण तक सीमित नहीं है, बल्कि उन दूरदर्शी नेतृत्वकर्ताओं का सम्मान है, जिन्होंने अपने नवाचार, कठोर परिश्रम और दूरदृष्टि के माध्यम से देश और समाज की आर्थिक एवं सामाजिक प्रगति को नई दिशा प्रदान की है। उन्होंने कहा कि बिना कठिन परिश्रम के सफलता संभव नहीं है और यह पुरस्कार विजेताओं की निरंतर मेहनत, समर्पण एवं प्रतिबद्धता का परिणाम है।
राज्यपाल ने कहा कि आज पुरस्कार प्राप्त करने के साथ ही सभी विजेता एक नई जिम्मेदारी के स्तर पर पहुँच गए हैं, जहाँ से वे समाज के लिए मार्गदर्शक की भूमिका निभाएँगे और अन्य लोग उनसे प्रेरणा व परामर्श लेंगे। उन्होंने सभी पुरस्कार विजेताओं को हार्दिक बधाई देते हुए कहा कि उनकी उपलब्धियाँ भारतीय उद्यमशीलता, वैश्विक प्रतिस्पर्धा में उत्कृष्ट प्रदर्शन तथा गुणवत्ता के प्रति अटूट प्रतिबद्धता को दर्शाती हैं।
राज्यपाल ने कहा कि वर्ष 2047 तक “विकसित भारत” के राष्ट्रीय संकल्प को साकार करने के लिए सरकार, उद्योग और समाज के बीच मजबूत एवं प्रभावी साझेदारी अत्यंत आवश्यक है। माननीय प्रधानमंत्री द्वारा देखे गए विकसित भारत के सपने को साकार करने की सबसे बड़ी जिम्मेदारी आज आप जैसे सक्षम और दूरदर्शी नेतृत्वकर्ताओं के कंधों पर है। उन्होंने कहा कि आप सभी इस परिवर्तनकारी यात्रा के टॉर्चबियरर हैं।
राज्यपाल लेफ्टिनेंट जनरल गुरमीत सिंह (से नि) ने रविवार को देहरादून में टाइम्स ऑफ इंडिया समूह द्वारा आयोजित “ET Leadership Excellence Awards” समारोह में विभिन्न क्षेत्रों में उत्कृष्ट योगदान देने वाले विशिष्ट व्यक्तियों को सम्मानित किया।
समारोह को संबोधित करते हुए राज्यपाल ने कहा कि यह आयोजन केवल पुरस्कार वितरण तक सीमित नहीं है, बल्कि उन दूरदर्शी नेतृत्वकर्ताओं का सम्मान है, जिन्होंने अपने नवाचार, कठोर परिश्रम और दूरदृष्टि के माध्यम से देश और समाज की आर्थिक एवं सामाजिक प्रगति को नई दिशा प्रदान की है। उन्होंने कहा कि बिना कठिन परिश्रम के सफलता संभव नहीं है और यह पुरस्कार विजेताओं की निरंतर मेहनत, समर्पण एवं प्रतिबद्धता का परिणाम है।
राज्यपाल ने कहा कि आज पुरस्कार प्राप्त करने के साथ ही सभी विजेता एक नई जिम्मेदारी के स्तर पर पहुँच गए हैं, जहाँ से वे समाज के लिए मार्गदर्शक की भूमिका निभाएँगे और अन्य लोग उनसे प्रेरणा व परामर्श लेंगे। उन्होंने सभी पुरस्कार विजेताओं को हार्दिक बधाई देते हुए कहा कि उनकी उपलब्धियाँ भारतीय उद्यमशीलता, वैश्विक प्रतिस्पर्धा में उत्कृष्ट प्रदर्शन तथा गुणवत्ता के प्रति अटूट प्रतिबद्धता को दर्शाती हैं।
राज्यपाल ने कहा कि वर्ष 2047 तक “विकसित भारत” के राष्ट्रीय संकल्प को साकार करने के लिए सरकार, उद्योग और समाज के बीच मजबूत एवं प्रभावी साझेदारी अत्यंत आवश्यक है। माननीय प्रधानमंत्री द्वारा देखे गए विकसित भारत के सपने को साकार करने की सबसे बड़ी जिम्मेदारी आज आप जैसे सक्षम और दूरदर्शी नेतृत्वकर्ताओं के कंधों पर है। उन्होंने कहा कि आप सभी इस परिवर्तनकारी यात्रा के टॉर्चबियरर हैं।
राज्यपाल लेफ्टिनेंट जनरल गुरमीत सिंह (से नि) ने रविवार को देहरादून में टाइम्स ऑफ इंडिया समूह द्वारा आयोजित “ET Leadership Excellence Awards” समारोह में विभिन्न क्षेत्रों में उत्कृष्ट योगदान देने वाले विशिष्ट व्यक्तियों को सम्मानित किया।
समारोह को संबोधित करते हुए राज्यपाल ने कहा कि यह आयोजन केवल पुरस्कार वितरण तक सीमित नहीं है, बल्कि उन दूरदर्शी नेतृत्वकर्ताओं का सम्मान है, जिन्होंने अपने नवाचार, कठोर परिश्रम और दूरदृष्टि के माध्यम से देश और समाज की आर्थिक एवं सामाजिक प्रगति को नई दिशा प्रदान की है। उन्होंने कहा कि बिना कठिन परिश्रम के सफलता संभव नहीं है और यह पुरस्कार विजेताओं की निरंतर मेहनत, समर्पण एवं प्रतिबद्धता का परिणाम है।
राज्यपाल ने कहा कि आज पुरस्कार प्राप्त करने के साथ ही सभी विजेता एक नई जिम्मेदारी के स्तर पर पहुँच गए हैं, जहाँ से वे समाज के लिए मार्गदर्शक की भूमिका निभाएँगे और अन्य लोग उनसे प्रेरणा व परामर्श लेंगे। उन्होंने सभी पुरस्कार विजेताओं को हार्दिक बधाई देते हुए कहा कि उनकी उपलब्धियाँ भारतीय उद्यमशीलता, वैश्विक प्रतिस्पर्धा में उत्कृष्ट प्रदर्शन तथा गुणवत्ता के प्रति अटूट प्रतिबद्धता को दर्शाती हैं।
राज्यपाल ने कहा कि वर्ष 2047 तक “विकसित भारत” के राष्ट्रीय संकल्प को साकार करने के लिए सरकार, उद्योग और समाज के बीच मजबूत एवं प्रभावी साझेदारी अत्यंत आवश्यक है। माननीय प्रधानमंत्री द्वारा देखे गए विकसित भारत के सपने को साकार करने की सबसे बड़ी जिम्मेदारी आज आप जैसे सक्षम और दूरदर्शी नेतृत्वकर्ताओं के कंधों पर है। उन्होंने कहा कि आप सभी इस परिवर्तनकारी यात्रा के टॉर्चबियरर हैं।

बरेली से सामने आई यह घटना समाज को सोचने पर मजबूर करने वाली है। शादी शुरू होने से ठीक पहले एक दुल्हन ने वह कदम उठाया, जिसे बहुत लोग लेने की हिम्मत नहीं कर पाते। दहेज की मांग को लेकर उसने विवाह से साफ इंकार कर दिया और पूरे समारोह में मौजूद लोगों को चौंका दिया।
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, दूल्हे ने ₹20 लाख नकद और एक ब्रेज़ा कार की मांग रखी थी। आरोप है कि मांग पूरी न होने पर दूल्हे और उसके परिजनों ने मेहमानों के सामने दुल्हन के पिता और भाई का अपमान किया और स्पष्ट कहा कि शर्तें माने बिना शादी नहीं होगी। माहौल तनावपूर्ण हो गया, लेकिन इसके बाद जो हुआ, वह प्रेरणादायक था।
दुल्हन ने दबाव, सामाजिक डर और भावनात्मक ब्लैकमेल के आगे झुकने के बजाय आत्मसम्मान को चुना। शांति और दृढ़ता के साथ उसने शादी रद्द करने का फैसला लिया। उसका कहना था कि वह ऐसे व्यक्ति के साथ जीवन नहीं बिता सकती जो दहेज को अधिकार समझे और उसके परिवार के सम्मान को ठेस पहुंचाए।
उसने साफ संदेश दिया कि माता-पिता का सम्मान किसी भी रिश्ते से ऊपर है और लालच पर टिका विवाह स्वीकार्य नहीं। इस फैसले की सोशल मीडिया पर व्यापक सराहना हो रही है। लोग इसे साहस, आत्मसम्मान और महिला सशक्तिकरण का प्रतीक बता रहे हैं।
आज भी जब दहेज प्रथा कई परिवारों को तोड़ देती है, बरेली की यह घटना समाज के लिए एक मजबूत संदेश बन गई है—कि गरिमा और सम्मान के साथ लिया गया निर्णय ही सच्ची जीत है।
सिख धर्म में शहीदी सप्ताह 21-27 दिसंबर तक।
आओ हम सब मिलकर इस सप्ताह को पूरी श्रद्धा और भक्ति से मनायें।
सिखों के दसवें गुरु, गुरु गोबिंद सिंहजी के परिवार की शहादत को आज भी इतिहास की सबसे बड़ी शहादत माना जाता है। धर्म व आम जन की रक्षा के लिए दी गई इस शहादत जैसा दूसरा ही कोई उदाहरण सुनने या पढ़ने को मिलता हो। श्रद्धावान सिख नानकशाही कैलेंडर के अनुसार, 21 दिसंबर से लेकर 27 दिसंबर तक, शहीदी सप्ताह मनाते हैं। इन दिनों गुरुद्वारों से लेकर घरों तक में कीर्तन-पाठ बड़े स्तर पर किया जाता है। बच्चों को गुरु साहिब के परिवार की शहादत के बारे में बताया जाता है। साथ ही कई श्रद्धावान सिख इस पूरे हफ्ते जमीन पर सोते हैं और माता गुजरी व साहिबजादों की शहादत को नमन करते हैं। दरअसल, इसी कड़कड़ाती ठंड के बीच माता गुजरी और दोनों छोटे साहिबजादों को सरहंद के ठंड बुर्ज में खुले आसमान के नीचे कैद किया गया था। इतिहास में इस पूरे हफ्ते क्या हुआ था, बता रहे हैं।
20 दिसंबर : मुगलों ने आनंदपुर साहिब के किले पर हमला कर दिया था। गुरु गोबिंद सिंह जी मुगलों से लड़ना चाहते थे, लेकिन अन्य सिखों ने उन्हें वहां से चलने के लिए कहा। इसके बाद गुरु गोबिंद सिंह के परिवार सहित अन्य सिखों ने आनंदपुर साहिब के किले को छोड़ दिया और वहां से निकल पड़े।
21 दिसंबर : जब सभी लोग सरसा नदी को पार कर रहे थे तो पानी का बहाव इतना तेज हो गया कि पूरा परिवार बिछड़ गया। बिछड़ने के बाद गुरु गोबिंद सिंह व दो बड़े साहिबजादे बाबा अजित सिंह व बाबा जुझार सिंह चमकौर पहुंच गए। वहीं, माता गुजरी, दोनों छोटे साहिबजादे बाबा जोरावर सिंह व बाबा फतेह सिंह और गुरु साहिब के सेवक रहे गंगू गुरु साहिब व अन्य सिखों से अलग हो गए। इसके बाद गंगू इन सभी को अपने घर ले गया लेकिन उसने सरहंद के नवाज वजीर खान को जानकारी दे दी जिसके बाद वजीर खान माता गुजरी और दोनों छोटे साहिबजादों को कैद कर लिया।
22 दिसंबर : इस दिन चमकौर की लड़ाई हुई जिसमें सिख और मुगलों की सेना आमने-सामने थी। मुगल बड़ी संख्या में थे लेकिन सिख कुछ ही थे। गुरु गोबिंद सिंह जी ने सिखों में हौंसला भरा और युद्ध में डटकर सामना करने को कहा। इसके बाद सिखों ने मुगलों से लोहा लिया और उन्हें नाको चने चबवाए।
23 दिसंबर : यह युद्ध अगले दिन भी चलता रहा। युद्ध में सिखों को शहीद होता देखा दोनों बड़े साहिबजादों बाबा अजित सिंह व बाबा जुझार सिंह ने एक-एक कर युद्ध में जाने की अनुमति गुरु साहिब से मांगी। गुरु साहिब ने उन्हें अनुमति दी और उन्होंने एक के बाद एक मुगल को मौत के घाट उतारना शुरू किया। इसके बाद वह दोनों भी शहीद हो गए।
24 दिसंबर : गुरु गोबिंद सिंह जी भी इस युद्ध में उतरना चाहते थे लेकिन अन्य सिखों ने अपने अधिकारों का इस्तेमाल करते हुए गुरु साहिब जो युद्ध में उतरने से रोक दिया और उन्हें वहां से जाने को कहा। मजबूरन गुरु साहिब को वहां से निकलना पड़ा। इसके बाद वह सिख मैदान में लड़ते हुए शहीद हो गए।
25 दिसंबर : यहां से निकलने के बाद गुरु गोबिंद सिंह जी एक गांव में पहुंचे जहां उन्हें बीबी हरशरन कौर मिलीं जो गुरु साहिब को आदर्श मानती थीं। उन्हें जब युद्ध में शहीद हुए सिखों व साहिबजादों की जानकारी मिली तो वह चुपके से चमकौर पहुंचीं और शहीदों का अंतिम संस्कार करना शुरू किया जबकि मुगल यह नहीं चाहते थे। वह चाहते थे कि चील-गिद्द इन्हें खाएं। जैसे ही मुगल सैनिकों ने बीबी हरशरन कौर को देखा, उन्हें भी आग के हवाले कर दिया और वह भी शहीद हो गईं।
26 दिसंबर : सरहंद के नवाज वजीर खान ने माता गुजरी और दोनों छोटे साहिबजादों बाबा जोरावर सिंह व बाबा फतेह सिंह को ठंडा बुर्ज में खुले आसमान के नीचे कैद कर दिया। वजीर खान ने दोनों छोटे साहिबजादों को अपनी कचहरी में बुलाया और डरा-धमकाकर उन्हें धर्म परिवर्तन करने को कहा लेकिन दोनों साहिबजादों ने ‘जो बोले सो निहाल, सत श्री अकाल’ के जयकारे लगाते हुए धर्म परिवर्तन करने से मना कर दिया। वजीर खान ने फिर धमकी देते हुए कहा कि कल तक या तो धर्म परिवर्तन करो या मरने के लिए तैयार रहो।
27 दिसंबर : ठंडे बुर्ज में कैद माता गुजरी ने दोनों साहिबजादों को बेहद प्यार से तैयार करके दोबारा से वजीर खान की कचहरी में भेजा। यहां फिर वजीर खान ने उन्हें धर्म परिवर्तन करने को कहा लेकिन छोटे साहिबजादों ने मना कर दिया और फिर से जयकारे लगाने लगे। यह सुन वजीर खान तिलमिला उठा और दोनों साहिबजादों को जिंदा दीवार में चिनवाने का हुक्म दे दिया और साहिबजादों को शहीद कर दिया। यह खबर जैसे ही माता दादी माता गुजरी के पास पहुंची, उन्होंने भी अपने प्राण त्याग दिए।
*अखण्ड सनातन समिति*