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A life with true growth begins when you commit to learn at every stage. Those who remain learner at heart continue to advance in every area of life.
#gurmeetramrahim #ramrahim #keeplearning #growthmindset #wisdomquotes

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Karam karne jati hain kand ho jata hain 😂 Comedy Reels 🤪 keshav shashi vlogs #mentalhealth #personaldevelopment #schoolevents #confidence #schoolspir… See more

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Agenda Aaj Tak में देश के शूरवीरों का इंटरव्यू लेने का सौभाग्य। इनमें ऑपरेशन सिंदूर समेत आतंक निरोधी ऑपरेशन में वीरता पदक हासिल किए सैनिकों का इंटरव्यू लेकर गौरवान्वित हूँ। यही तो देश के असली हीरो हैं

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एक ऐसी सच्ची कहानी, जो किसी खूबसूरत फ़िल्म की स्क्रिप्ट से भी ज़्यादा सुंदर लगती है!

बिहार के बक्सर जिला के रहने वाले गोलू यादव के लिए वो एक आम दिन था, हमेशा की तरह एक साधारण रेल यात्रा! लेकिन असल में यह उनके जीवन का सबसे खूबसूरत दिन बनने वाला था।

ट्रेन में गोलू ने एक युवा लड़की को भीख माँगते देखा। बात की तो पता चला कि वो लड़की अनाथ, अकेली और बेसहारा है। वह चाहते तो उसका दुःख बांटकर आगे बढ़ सकते थे; लेकिन इसके बजाय उन्होंने लड़की की मदद करने का फैसला किया।

बहुत मेहनत और धैर्य के साथ गोलू ने उसके परिवार का पता लगाया, और सालों बाद उसे उसके बिछड़े हुए रिश्तेदारों से मिलवा दिया। लेकिन कहानी यहीं खत्म नहीं हुई…

उसकी ज़िंदगी को दोबारा सँवारने की इस कोशिश के दौरान, दोनों के बीच भरोसे का एक प्यारा सा रिश्ता बन गया। धीरे–धीरे यही भरोसा प्यार में बदल गया।
और रेलवे प्लेटफॉर्म से शुरू हुई यह कहानी शादी के मंडप तक पहुँच गई।

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सुबह स्कूल वैन चलाते हैं, शाम को गरीब बच्चों को पढ़ाते हैं। ये कहानी है ओडिशा के 50 वर्षीय नारायण प्रसाद सिंह की, जिन्होंने गरीबी और हालात के बावजूद अपने टीचर बनने के सपने को नहीं छोड़ा। कट्टक ज़िले के अनासपुर गांव के रहने वाले सिंह का बचपन बेहद साधारण परिवार में बीता।

1992 में उन्होंने बड़ी मेहनत से ग्रेजुएशन पूरा किया, लेकिन आर्थिक स्थिति कमजोर होने की वजह से वो B.Ed नहीं कर पाए, जो एक टीचर बनने के लिए ज़रूरी था। कई स्कूलों में नौकरी के लिए आवेदन किया, लेकिन हर जगह से सिर्फ एक ही जवाब मिला "योग्यता अधूरी है।" मजबूरी में उन्होंने कमर्शियल ड्राइवर की नौकरी की, लेकिन मन हमेशा बच्चों को पढ़ाने में ही लगा रहा।

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सुबह स्कूल वैन चलाते हैं, शाम को गरीब बच्चों को पढ़ाते हैं। ये कहानी है ओडिशा के 50 वर्षीय नारायण प्रसाद सिंह की, जिन्होंने गरीबी और हालात के बावजूद अपने टीचर बनने के सपने को नहीं छोड़ा। कट्टक ज़िले के अनासपुर गांव के रहने वाले सिंह का बचपन बेहद साधारण परिवार में बीता।

1992 में उन्होंने बड़ी मेहनत से ग्रेजुएशन पूरा किया, लेकिन आर्थिक स्थिति कमजोर होने की वजह से वो B.Ed नहीं कर पाए, जो एक टीचर बनने के लिए ज़रूरी था। कई स्कूलों में नौकरी के लिए आवेदन किया, लेकिन हर जगह से सिर्फ एक ही जवाब मिला "योग्यता अधूरी है।" मजबूरी में उन्होंने कमर्शियल ड्राइवर की नौकरी की, लेकिन मन हमेशा बच्चों को पढ़ाने में ही लगा रहा।

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सुबह स्कूल वैन चलाते हैं, शाम को गरीब बच्चों को पढ़ाते हैं। ये कहानी है ओडिशा के 50 वर्षीय नारायण प्रसाद सिंह की, जिन्होंने गरीबी और हालात के बावजूद अपने टीचर बनने के सपने को नहीं छोड़ा। कट्टक ज़िले के अनासपुर गांव के रहने वाले सिंह का बचपन बेहद साधारण परिवार में बीता।

1992 में उन्होंने बड़ी मेहनत से ग्रेजुएशन पूरा किया, लेकिन आर्थिक स्थिति कमजोर होने की वजह से वो B.Ed नहीं कर पाए, जो एक टीचर बनने के लिए ज़रूरी था। कई स्कूलों में नौकरी के लिए आवेदन किया, लेकिन हर जगह से सिर्फ एक ही जवाब मिला "योग्यता अधूरी है।" मजबूरी में उन्होंने कमर्शियल ड्राइवर की नौकरी की, लेकिन मन हमेशा बच्चों को पढ़ाने में ही लगा रहा।

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सुबह स्कूल वैन चलाते हैं, शाम को गरीब बच्चों को पढ़ाते हैं। ये कहानी है ओडिशा के 50 वर्षीय नारायण प्रसाद सिंह की, जिन्होंने गरीबी और हालात के बावजूद अपने टीचर बनने के सपने को नहीं छोड़ा। कट्टक ज़िले के अनासपुर गांव के रहने वाले सिंह का बचपन बेहद साधारण परिवार में बीता।

1992 में उन्होंने बड़ी मेहनत से ग्रेजुएशन पूरा किया, लेकिन आर्थिक स्थिति कमजोर होने की वजह से वो B.Ed नहीं कर पाए, जो एक टीचर बनने के लिए ज़रूरी था। कई स्कूलों में नौकरी के लिए आवेदन किया, लेकिन हर जगह से सिर्फ एक ही जवाब मिला "योग्यता अधूरी है।" मजबूरी में उन्होंने कमर्शियल ड्राइवर की नौकरी की, लेकिन मन हमेशा बच्चों को पढ़ाने में ही लगा रहा।

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सुबह स्कूल वैन चलाते हैं, शाम को गरीब बच्चों को पढ़ाते हैं। ये कहानी है ओडिशा के 50 वर्षीय नारायण प्रसाद सिंह की, जिन्होंने गरीबी और हालात के बावजूद अपने टीचर बनने के सपने को नहीं छोड़ा। कट्टक ज़िले के अनासपुर गांव के रहने वाले सिंह का बचपन बेहद साधारण परिवार में बीता।

1992 में उन्होंने बड़ी मेहनत से ग्रेजुएशन पूरा किया, लेकिन आर्थिक स्थिति कमजोर होने की वजह से वो B.Ed नहीं कर पाए, जो एक टीचर बनने के लिए ज़रूरी था। कई स्कूलों में नौकरी के लिए आवेदन किया, लेकिन हर जगह से सिर्फ एक ही जवाब मिला "योग्यता अधूरी है।" मजबूरी में उन्होंने कमर्शियल ड्राइवर की नौकरी की, लेकिन मन हमेशा बच्चों को पढ़ाने में ही लगा रहा।

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