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https://www.yole.com/whats-new..../is-sugar-free-ice-c

Is Sugar Free Ice Cream Healthy

Ice cream brands like Yolé are creating ice cream without any added sugar due to the variety of health concerns that are on the rise in the human population. For example, obesity is becoming a growing concern as the rates are rising everywhere around the world.
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सिद्धांतहीन धूर्त और महानालयक भ्रष्ट परिवार का सांड कहीं भी जाकर कुछ भी बक बक कर आता है। इस धूर्त और भ्रष्ट परिवार ने जितना देश की छवि को नुकसान पहुंचा क्या हासिल करना चाहता है समझ न आता....

इस सरकार से रुष्टता चरम पर होते हुए भी कांग्रेसियों के हिंदुत्व व राष्ट्र विरोधी कुकृत्य से इनसे घृणा कम ही न हो पाती है।

अब कैंब्रिज में छोड़ा नया शिगूफा पढ़िए,इसका मतलब समझ आए तो बताइए भी

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बनारस सिर्फ़ एक शहर नहीं है,ये एक भाव है जो हर दिल में बसता है। यहाँ अगर गंगा की लहरें जीवन को गतिमान करती हैं, तो शंकर के दर्शन से जीवन जीवंत रहने की प्रतिज्ञा कर लेता है।

इस शहर की गलियाँ अगर जीवन में मोह देती हैं तो यहाँ के घाट जीवन को मोह से मोक्ष की तरफ़ ले जातें हैं।

ये काशी के जो पवित्र घाट हैं न यहां पर टूटे हुए दिलों की मरम्मत भी होती है और इन्ही घाटों की सीढ़ियों के किसी कोने में बैठ कर एक नये इश्क़ की कहानी भी लिखी जाती है।

ये वही घाट है जहां कुछ दोस्त मिलकर एक आशिक़ की आशिक़ी का भूत उतारते हैं तो किसी दूसरे कोने में वैसे ही कुछ दिलजले दोस्त यार किसी दोस्त पर आशिक़ी का खुमार भी चढ़ा देते हैं।

वैसे ये बनारस के वही घाट है जहाँ बाबा तुलसी ने अद्भुत अतुलनीय ग्रंथ रामचरितमानस रच डाला जो आज हर हिंदू की आत्मा है। महाकवि जयशंकर प्रसाद ने इन्ही घाटों पर बैठ आंसू रचा जिसने व्यथित हृदयों की पीड़ा को आवाज दिया। किसी घाट किनारे ही काशीनाथ ने पूरे अस्सी मोहल्ले की ऐसी चर्चा लिखी की दुनिया को एक बार फिर से बनारसी लंठई, अक्खड़पन और गलियों द्वारा सहज संवाद का अप्रतिम अहसास हुआ।

अस्सी घाट की इन्ही सीढ़ियों पर बैठ कर एक युवा आने वाली जिंदगी को बेहतर बनाने की सोचता है, फिर जब वो यहाँ से उठकर दशाश्वमेध होते हुए मणिकर्णिका घाट तक पहुँचता है तो जलती हुई चिता को देखक उसके मन की सारी कल्पनाएं स्थिर हो जाती हैं तब उसे पता चलता जो जिंदगी वो जी रहा है सब मोह माया है।

मणिकर्णिका घाट के शमशान के केवल दर्शन मात्र से समस्त अहंकार समाप्त हो जाते हैं। क्यों की वहां पहुंचते ही फिजाओं से आवाज आती है की सब जन्म मुझी से पाते हैं, फिर लौट मुझी में आते हैं। ऐसा घाट, जहाँ मृत्यु भी उत्सव है।

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किसी के पास बहुत कुछ है प्रभु का दिया हुआ,
किसी के पास सिवाए प्रभु के कुछ भी नहीं है !!

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जहां में किसको क्या मिला इसका कोई हिसाब नहीं,
किसी के पास रूह नहीं किसी के पास लिबास नहीं ।।

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मुफलिसी भी तोहमत है बेटियो के लिए,
बाप "ग़रीब" हो तो "रिश्ते" नही आते !!

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बाबा अपनी रचना के जरिए समाज को जिस भाव से चित्रित किए हैं वो अलौकिक है....

खलन्ह हृदयँ अति ताप बिसेषी।
जरहिं सदा पर संपति देखी॥
जहँ कहुँ निंदा सुनहिं पराई।
हरषहिं मनहुँ परी निधि पाई॥

भावार्थ यह है कि.....

दुष्टों के हृदय में बहुत अधिक संताप रहता है। वे दूसरों की संपत्ति (सुख) देखकर सदा जलते रहते हैं। वे जहाँ कहीं दूसरे की निंदा सुनते हैं, वहाँ ऐसे प्रसन्न होते हैं जैसे कोई रास्ते में पड़े खजाने को पाकर खुश होता है।

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झुमके से कह दो गालों को चूमना छोड़ दे,
"इश्क रुस्वा हुआ तो कत्ल हजार होंगे...!!"

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#मीरा का मार्ग था प्रेम का, पर कृष्ण और मीरा के बीच अंतर था पाच हजार साल का। फिर यह प्रेम किस प्रकार बन सका प्रेम के लिए न तो समय का कोई अंतर है और न स्थान का। प्रेम एकमात्र कीमिया है, जो समय को और स्थान को मिटा देती है। जिससे तुम्हें प्रेम नहीं है वह तुम्हारे पास बैठा रहे, शरीर से शरीर छूता हो, तो भी तुम हजारों मील के फासले पर हो और जिससे तुम्हारा प्रेम है वह दूर चांद-तारों पर बैठा हो, तो भी सदा तुम्हारे पास बैठा है।
प्रेम एकमात्र जीवन का अनुभव है जहां टाइम और स्पेस, समय और स्थान दोनों व्यर्थ हो जाते हैं। प्रेम एकमात्र ऐसा अनुभव है जो स्थान की दूरी में भरोसा नहीं करता और न काल की दूरी में भरोसा करता है, जो दोनों को मिटा देता है। परमात्मा की परिभाषा में कहा जाता है कि वह काल और स्थान के पार है, कालातीत। प्रेम परमात्मा है, इसी कारण। क्योंकि मनुष्य के अनुभव में अकेला प्रेम ही है जो कालातीत और स्थानातीत है। उससे ही परमात्मा का जोड़ बैठ सकता है।
इससे कोई अंतर नहीं पड़ता कि कृष्ण पाच हजार साल पहले थे। प्रेमी अंतराल को मिटा देता है। प्रेम की तीव्रता पर निर्भर करता है। मीरा के लिए कृष्‍ण समसामयिक थे। किसी और को न दिखायी पड़ते हों, मीरा को दिखायी पड़ते थे। किसी और को समझ में न आते हों, मीरा उनके सामने ही नाच रही थी। मीरा उनकी भाव- भंगिमा पर नाच रही थी। मीरा को उनका इशारा-इशारा साफ था। यह थोड़ा हमें जटिल मालूम पड़ेगा, क्योंकि हमारा भरोसा शरीर में है। शरीर तो मौजूद नहीं था।
जिस कृष्‍ण को मीरा प्रेम कर रही थी, वे देहधारी कृष्ण नहीं थे। वह देह तो पाच हजार साल पहले जा चुकी। वह तो धूल-धूल में मिल चुकी। इसलिए जानकार कहते हैं कि मीरा का प्रेम राधा के प्रेम से भी बड़ा है। होना भी चाहिए।अगर राधा प्रसन्न थी कृष्ण को सामने पाकर, तो यह तो कोई बड़ी बात न थी। लेकिन मीरा ने पांच हजार साल बाद भी सामने पाया, यह बड़ी बात थी। जिन गोपियों ने कृष्‍ण को मौजूदगी में पाया और प्रेम किया प्रेम करने योग्य थे वे, उनकी तरफ प्रेम सहज ही बह जाता, वैसा उत्सवपूर्ण व्यक्तित्व पृथ्वी पर मुश्किल से होता है-तो कोई भी प्रेम में पड़ जाता।
लेकिन कृष्ण गोकुल छोड़कर चले गए द्वारका, तो बिलखने लगीं गोपियां, रोने लगी, पीड़ित होने लगीं। गोकुल और द्वारका के बीच का फासला भी वह प्रेम पूरा न कर पाया। वह फासला बहुत बड़ा न था। स्थान की ही दूरी थी, समय की तो कम से कम दूरी न थी। मीरा को स्थान की भी दूरी थी, समय की भी दूरी थी; पर उसने दोनों का उल्लंघन कर लिया, वह दोनों के पार हो गयी।
प्रेम के हिसाब में मीरा बेजोड़ है। एक क्षण उसे शक न आया, एक क्षण उसे संदेह न हुआ, एक क्षण को उसने ऐसा व्यवहार न किया कि कृष्ण पता नहीं, हों या न हों। वैसी आस्था, वैसी अनन्य श्रद्धा : फिर समय की कोई दूरी-दूरी नहीं रह जाती। दूरी रही ही नहीं।
आत्मा सदा है। जिन्होंने प्रेम का झरोखा देख लिया, उन्हें वह सदा जो आत्मा है, उपलब्ध हो जाती है। जो अमृत को उपलब्ध हुए व्यक्ति हैं-कृष्ण हों, कि बुद्ध हों, कि क्राइस्ट हों-जौ भी उन्हें प्रेम करेंगे, जब भी उन्हें प्रेम करेंगे, तभी उनके निकट आ जाएंगे। वे तो सदा उपलब्ध हैं, जब भी तुम प्रेम करोगे, तुम्हारी आख खुल जाती है।
ओशो

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