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हरियाणा के सोनीपत के मुरथल में स्थित “अमरीक सुखदेव ढाबा” आज सिर्फ एक ढाबा नहीं, बल्कि भारत की सबसे प्रेरक सफलता की कहानियों में से एक बन चुका है।
1956 में सरदार प्रकाश सिंह द्वारा तिरपाल और लकड़ी के खंभों से शुरू किया गया यह छोटा सा ढाबा पहले केवल ट्रक चालकों का ठहराव हुआ करता था। चारपाइयां बिछाकर उन्हें खाना और आराम की जगह दी जाती थी।
लेकिन वक्त के साथ उनके बेटे अमरीक सिंह और सुखदेव सिंह ने इस ढाबे को नई पहचान दी। दोनों भाइयों के नाम पर बना “अमरीक सुखदेव” आज 100 करोड़ रुपये का साम्राज्य है। एक ऐसा ढाबा जहां हर दिन 10,000 से अधिक लोग खाना खाने आते हैं और 500 से ज्यादा कर्मचारी यहां काम करते हैं।
परांठों के स्वाद से आगे बढ़कर यह ढाबा अब भारतीय उद्यमिता का प्रतीक बन चुका है।
यह कहानी साबित करती है कि सही विजन, गुणवत्ता और ग्राहकों को समझने की क्षमता एक छोटे ढाबे को राष्ट्रीय ब्रांड बना सकती है।
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