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"मैं फुटपाथ पर रहने वाले बच्चों को शिक्षा देती हूँ। जब मैं उन्हें पढ़ा देती हूँ और थोड़ा-बहुत खाने को देती हूँ, तो उनकी आँखों में जो चमक और मुस्कान होती है, वो अनमोल होती है। इन मासूम बच्चों की ये खुशी छोटी-सी मदद से मिलती है, पर मैं चाहती हूँ कि इनकी ज़िंदगी में हमेशा ये खुशी बनी रहे — सिर्फ पलभर के लिए नहीं, बल्कि हमेशा के लिए। ये बच्चे जिन हालातों में जी रहे हैं, वो उनका भविष्य तय न करें — बल्कि उनकी मुस्कान करे।
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"कभी चेहरे से नहीं, दिल से खूबसूरती और स्टाइल झलकती है।"
"वो जो मुस्कान के पीछे दर्द छुपा लें, वही सच्चे बहादुर होते हैं।"
भारत के भगवान ने मुझे बचाया', गोवा आ@ग में बची कजाख की डांसर की कहानी
गोवा के एक नाइटक्लब में लगी भयानक आ#ग में 26 लोगों की मौ@त हो गई, लेकिन कजाखिस्तान की डांसर क्रिस्टीना मौत के मुंह से बाल-बाल बच गई. वह जिस कमरे में जाने वाली थीं, वहां आग फैल चुकी थी. एक टीम मेंबर ने उन्हें रोक लिया. क्रिस्टीना ने कहा मेरे लिए वही भारतीय देवता हैं, उन्होंने मेरी जान बचाई.क्रिस्टीना उस रात अपने दूसरे परफॉर्मेंस के लिए मंच पर थीं. हाईवे से लगते इस नाइटक्लब में भीड़ काफी अधिक थी. संगीत तेज चल रहा था और लोग डांस का आनंद ले रहे थे. इसी दौरान अचानक शॉर्ट सर्किट हुआ और कुछ ही सेकंड में आग ने तेजी से फैलकर पूरे क्लब को अपनी चपेट में ले लिया. उसी समय एक वीडियो वायरल हो गया, जिसमें क्रिस्टीना मंच पर परफॉर्म कर रही हैं और अगले ही पल दर्शक अपनी जान बचाने के लिए भागते दिखाई देते हैं.गोवा के प्रसिद्ध नाइटक्लब Birch by Romeo Lane में लगी भीषण आग ने देशभर को हिला दिया. इस हा"दसे में 26 लोगों की मौ@त हो गई, जबकि कई लोग गं"भीर रूप से घा"यल हुए. इन्हीं बचे हुए लोगों में एक नाम सबसे ज्यादा चर्चा में है. कजाखिस्तान की पेशेवर बेली डांसर हैं क्रिस्टीना. हादसे से जुड़े कई वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुए, जिनमें क्रिस्टीना का परफॉर्मेंस और आग लगते ही वहां फैली अफरा-तफरी साफ दिखाई देती है. लेकिन इन सबके बीच क्रिस्टीना की कहानी सबसे ज्यादा दिल छू लेने वाली है, क्योंकि वह मौ@त के बिल्कुल करीब पहुंच चुकी थीं.
बॉलीवुड में कई स्टार आते हैं, कई जाते हैं… लेकिन कुछ ऐसे कलाकार होते हैं जो अपनी एक्टिंग से पीढ़ियाँ याद रखती हैं। उन्हीं में से एक नाम है— **अक्षय खन्ना**।
यह पोस्ट उनके करियर की उस जर्नी का सबूत है, जहाँ एक एक्टर खुद को हर फिल्म में बदलता गया—इतना कि लोग पहचान तक नहीं पाए।
“Hungama” का मासूम और मज़ाकिया लड़का जब “Section 375” में एक तीखे दिमाग वाला वकील बनता है, तो लगता है जैसे स्क्रीन पर कोई दूसरा एक्टर है। वहीं “Drishyam 2” में उनका इंटेंस, अंदर तक चुभने वाला किरदार बता देता है कि अक्षय सिर्फ एक्टिंग नहीं करते—वो किरदार को जीते हैं।
लेकिन असली कमाल तो तब आता है जब वे “Chhaava” में एक ऐतिहासिक राजा बने दिखते हैं—रॉयल लुक, कड़क आंखें और राजसी व्यक्तित्व… पूरी तरह ट्रांसफॉर्मेशन!
इसके बाद “Dhurandhar” में घायल, टूटा हुआ, लेकिन भीतर से आग से भरा व्यक्तित्व—यह लुक वही समझ सकता है जो अक्षय की एक्टिंग की गहराई को महसूस कर चुका है।
और फिर—“Mahakaal” वाला रौद्र रूप!
ऐसा लुक देखकर fans कहते हैं—
**“एक्टर नहीं, आग है ये इंसान!”**
अक्षय खन्ना लंबे समय से लाइमलाइट से दूर रहकर भी अपनी हर फिल्म से साबित करते आए हैं कि स्टारडम का शोर नहीं, टैलेंट की गूंज मायने रखती है।
सच में…
**वह सिर्फ एक्टर नहीं, versatility का दूसरा नाम हैं।🔥**
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आज भारत में नटराज और अप्सरा पेंसिल सिर्फ स्टेशनरी ब्रांड नहीं, बल्कि हर छात्र की पहचान बन चुकी हैं। लेकिन बहुत कम लोग जानते हैं कि इन ब्रांड्स के पीछे तीन दोस्तों की ऐसी कहानी है, जो असफलताओं, मज़ाक और सीमित संसाधनों से लड़कर बनी है।
1950 के दशक में जब बी. जे. सांगवी, रामनाथ मेहरा और मनसुखानी ने पेंसिल मैन्युफैक्चरिंग का विचार रखा, तो उन्हें ताने सुनने पड़े। लोग कहते थे, “पेंसिल बनाकर कौन अमीर बनता है?”
उस समय भारतीय बाज़ार पर विदेशी पेंसिलों का दबदबा था और देसी उत्पादों को कमतर समझा जाता था।
लेकिन तीनों दोस्तों ने हार नहीं मानी। बी. जे. सांगवी गरीबी और सीमित पूंजी के बावजूद अपने सपने पर डटे रहे। वे जर्मनी गए, जहाँ उन्होंने पेंसिल बनाने की आधुनिक मशीनों और तकनीक को समझा। भारत लौटने के बाद वे महीनों तक जंगलों में सही लकड़ी की तलाश में भटके और आखिरकार उन्हें पॉपलर वुड मिला, जो विदेशी सीडर का मज़बूत और सस्ता विकल्प साबित हुआ।
मशीनें खरीदने के पैसे नहीं थे, इसलिए इन्होंने भारतीय इंजीनियरों के साथ मिलकर देसी जुगाड़ से खुद मशीनें तैयार कीं। यही आत्मनिर्भरता आगे चलकर उनकी सबसे बड़ी ताकत बनी।
साल 1958 में हिंदुस्तान पेंसिल्स लिमिटेड की नींव पड़ी और इसके साथ ही आया नटराज 621 HB, जिसने धीरे-धीरे भारतीय बाज़ार में अपनी जगह बनानी शुरू की। कंपनी ने स्कूलों में फ्री सैंपल देने की रणनीति अपनाई। बच्चों और शिक्षकों ने गुणवत्ता को पहचाना और नटराज देशभर में लोकप्रिय हो गई।
इसके बाद 1970 में अप्सरा ब्रांड लॉन्च हुआ, जिसने आर्टिस्ट और प्रोफेशनल सेगमेंट में अपनी अलग पहचान बनाई। डस्ट-फ्री इरेज़र, प्रीमियम पेंसिल और शार्पनर जैसे इनोवेशन के साथ कंपनी ने लगातार अपने प्रोडक्ट पोर्टफोलियो को मज़बूत किया।
आज हिंदुस्तान पेंसिल्स
भारत के स्टेशनरी मार्केट में 65 प्रतिशत हिस्सेदारी रखती है।
कंपनी रोज़ाना
80 लाख पेंसिल,
15 लाख शार्पनर,
और 25 लाख इरेज़र का उत्पादन करती है।
इसका सालाना ऑपरेटिंग रेवेन्यू करीब 500 करोड़ रुपये है।
यह कहानी सिर्फ पेंसिल बनाने की नहीं है, यह कहानी है हिम्मत, नवाचार, देसी इंजीनियरिंग और भारत में ब्रांड बनाने के आत्मविश्वास की।
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सच्चा प्रेम बस दिल से दिल तक जुड़कर हमेशा कायम रहता है। ❤️✨
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ये हैं निहाल सिंह जिन्होंने 40 फीट गहरे नाले में गिरी बस का शीशा तोड़कर 20 लोगों की जान बचाई। यमुना एक्सप्रेसवे पर जा रही जनरथ बस अनियंत्रित होकर झरना नाले में गिर गई ये हादसा सुबह करीब चार बजे हुआ। बस 40 फीट गहरे नाले जा गिरी थी। बस में पानी भर चुका था। लोग जिंदगी के लिए छटपटा रहे थे।
बस के गिरने की आवाज और लोगों की चीख-पुकार सुनते ही चौगान गांव के बघेल ठार निवासी निहाल सिंह पहुंच गए थे। उन्होंने एक पल की देरी किए बगैर नाले में छलांग लगा दी।
निहाल सिंह बस का शीशा तोड़कर अंदर घुसे इसके बाद गेट खोलकर यात्रियों को एक-एक कर बाहर निकाला। निहाल की मदद से 20 लोग बस से बाहर निकले थे। ये सभी घायल थे। सबकी जान बच गई। इस बहादुरी के लिए निहाल सिंह को जीवन रक्षा पदक से नवाज गया। 💐💐