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जिस अवधि में भारतीय समाज में 48 लाख शादियों हो रहीं हैं। इसका अर्थ है कि बाजार में जमकर खरीदारी हो रही है। ऐसे समय में GDP ग्रोथ हमेशा 8% रहती है।
लेकिन जो ताजा आंकड़े आये हैं वह डराने वाले हैं। GDP ग्रोथ 5.4% है। यदि इसका सही मूल्यांकन हो तो 3% ही होगा।
मुफ्तखोरी, स्किल की कमी, ऊँची ब्याज दर, कम्पनियों के एकाधिकार से भारतिय अर्थव्यवस्था ढहने के करीब है।
इनकमटैक्स, GST कि वसूली से सरकार तो मालामाल है, लेकिन लोगों के पास पैसे नहीं है।
बड़ी बड़ी कम्पनियों को इतनी छूट दी गई कि वह लघु उद्योगों को निगल गयीं। उन्होंने भारतीय समाज को उपभोक्ता बना दिया। जो युवा अपना व्यापार खड़ा कर सकते थे वह कर्मचारी बन गये।10-12 हजार वेतन पर एरिया मैनेजर जैसे टैग लगाकर घूम रहें हैं।
इसमें सभी राजनीतिक दल, सरकारें सम्मलित हैं। जिन्होंने राजनीतिक सत्ता के लिये लाभार्थी वर्ग पैदा किया। मुफ्तखोरी, लोभ की कोई सीमा नहीं होती है। जिसे हम लाभार्थी वर्ग कहते हैं, वास्तव में वह लोभार्थी, अकर्मण्य वर्ग है।
वित्तमंत्री सीतारमण के पास कोई नया विचार, दूरदृष्टि नहीं है। वह अधिकारियों द्वारा बनायी फाइलों पर हस्ताक्षर कर सकती हैं! वही कर रहीं हैं। इस विशालकाय अर्थव्यवस्था को संभालने के लिये किसी नये वित्तमंत्री की आवश्यकता है।
बड़े बदलाव की आवश्यकता है। अभी नहीं हुआ तो बहुत देरी हो जायेगी।।
Ravishankar Singh
हालांकि वि शा ल जी का मानना है कि जीडीपी ग्रोथ कम देखकर डरने की जरूरत नहीं है। सब बेस इफेक्ट का खेल है।
उदाहरण के लिए कि पिछले साल के सेकेंड क्वार्टर में मैन्युफैक्चरिंग में हम जो 14% की तेज वृद्धि देख रहे थे, उसका कारण उसके भी पिछले साल(FY2023) में संकुचित अर्थव्यवस्था थी जो 7.2% थी जिस कारण हमने पिछले साल 14% की वृद्धि देखी।
#बेस_इफेक्ट समझना हो तो ऐसे समझो कि... मान लो कि पिछले साल एक तिमाही में किसी उद्योग में 10% की गिरावट हुई थी। इस साल उस उद्योग ने 5% की वृद्धि की है। लेकिन, क्योंकि पिछले साल की तुलना में 10% गिरावट थी, इस साल की वृद्धि बहुत बड़ी (15%) दिखाई देगी, जबकि असल में यह 5% ही है।
और ज्यादा आसानी से समझना है तो मान लो कि 100 रुपये थे। पहले साल 7% से बढ़कर 107 रुपये हो गए, उसके अगले साल 107 रुपये 14% से बढ़ 122 रुपये हो गए, और फिर तीसरे साल 122 रुपये 2% बढ़ 124.50 रूपये हो गए। अब देखने मे लगेगा कि तीसरे साल तो कम वृद्धि हो गयी लेकिन यही बेस इफेक्ट है, वरना अगर सामान्य रूप से तीनों साल 7% की वृद्धि होती तो पहले साल 100 का 107, फिर 107 का 114.50 और फिर तीसरे साल 114.50 का 122 रुपया बनता लेकिन तब किसी की नजर इसपर नहीं जाती।
लेकिन चूंकि बेस इफेक्ट ने इसी तरह का खेल किया तो तीसरे साल मैन्युफेक्चरिंग घटकर 2% दिखाने लगी और फिर ये अगली बार वापिस बड़ी वृद्धि दिखा देगी।
इसलिए अगर हम पिछले दो साल+ इस साल, सेम क्वार्टर का देखें तो विनिर्माण क्षेत्र में 8% की अच्छी वृद्धि हुई है और सेकंडरी सेक्टर (मैन्युफैक्चरिंग, कंस्ट्रक्शन आदि) में मिलाकर भी 8.7% की बढ़ोतरी हुई है।
इसी तरह का खेल जीडीपी ग्रोथ का है। वरना पिछले 6 क्वार्टर का जीडीपी 7.28% है जो 7% को मेंटेन किया हुआ है और पिछले 14 क्वार्टर पर जाएं जो कोरोना के बाद 2021-2022 से शुरू हुआ था तो उसका एवरेज 8% निकलता है लेकिन इस दौरान दो क्वार्टर उतार चढ़ाव के कारण 20% और 13% भी रहे।
कहने का मतलब कि उतार चढ़ाव पहले भी हुए हैं और आगे भी होंगे लेकिन हमारी जीडीपी 7-8% पर बनी रहेगी जैसी हमें चाहिए।
कई बार डिमांड सप्लाई का मुद्दा आ जाता है जिसका कारण महंगाई होती है और इस महंगाई के कारण जब RBI को इसे मेंटेन रखने को रेपो रेट मेंटेन रखना पड़ता है तो इस तरह का फलक्चुअशन होता रहता है।
लेकिन फिर बाजार वापिस एडजस्ट कर देता है खुद को।
इस समय टमाटर, प्याज, आलू के दाम अचानक बढ़े थे। इसका कारण मैं यही मानता हूँ कि महाराष्ट्र का कृषि माफिया इससे वहां के चुनाव अपनी तरफ करना चाहता था। अब फिर दाम गिरेंगे तो महंगाई पर कंट्रोल आएगा।
महंगाई कम होते ही डिमांड और सप्लाई बढ़ जाती है।
वरना जहां कृषि में ग्रोथ 3.5% रही जो पिछले साल से दोगुनी है तो सप्लाई तो ज्यादा थी लेकिन फिर भी दाम कैसे बढ़े जैसे सप्लाई की शॉर्टेज आ गयी हो।
खैर ये समय भी कट जाएगा।
तब तक मुद्दा भुनाने की कोशिश करने वाले मुद्दा भुनाएंगे।
बाकी ये पोस्ट उनके लिए है जो मंदी की बकवास पर यकीन करने लगते हैं। ऐसी बद्दुआ तो ट्रिपल R, मदरनंदन जैसे इतने सालों से दे रहे भारत को।
बाकी, हमारा लक्ष्य 2030 से पहले 7 ट्रिलियन बनने का है और उसके लिए 7% के पास की ग्रोथ बरकरार रहेगी और तब तक हमारा मैन्युफैक्चरिंग का हिस्सा भी 14% से बढ़कर 32% पहुंच चुका होगा।